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जोव-अधिकार
गद्ध द्रव्य दृष्टि से जहा ज्ञानमात्र प्रकारा-म्बम्प प्रगट है. वहां शुद्ध जीव वस्तु निर्मल है नवकल्प है।
भावायं मदनद वन्द मात्र को ग्रहण करने वाला ज्ञान निश्चय नय करता है। उमनिरचय नय से जीव पदार्थ मवं भेद हित शद्ध है। मवं दम कम भावकम. नोकम अथवा परद्रव्य जिसमें ज्ञेयम्प है. ऐमा जो जीव व भावान्तर अथान :पाधन विभावभाव है उसको निज म्बम्प मेटने वाला है ।।१८ !! रोहा-परि समन व्यतार मो. पर्ययक्ति अनेक ।
नदप गिर नप देखिए. शुद्ध निरंजन एक ॥१८॥
अनुष्टुप प्रात्म श्चिन्तयवालं मेचकामेचकत्वयोः
दर्शनज चारित्रः माध्यसिद्धिर्न चान्यथा ॥१६॥ चनन द्रव्य का नया के पक्षपात में मलीन अमलोन रूप विचार करने में भी माध्य की सिद्धि नही. गेमा निश्चय जानो। भावार्थ-श्रुतज्ञान से आत्मम्वरूप का विचार करन में बहत विकल्प उत्पन्न होते हैं। एक पक्ष से । व्यवहार नय में। विचारने में आत्मा अनेकरूप है, दूसरे पक्ष मे (निश्चय नय से। विचाग्ने में आत्मा अभद रूप है। इस तरह विचार करना भी स्वम्प अनभव नहीं।
प्रश्न विचार करना अनुभव नहीं है तो फिर अनुभव है क्या ? उनर -प्रत्यक्षम्प में वस्तु का स्वाद लेना अनुभव है।
पद स्वरूप का अवलोकन (दगंन), शुद्ध स्वम्प का प्रत्यक्ष जानना ( जान। और गद्ध स्वरूप का आचरण । चारित्र). इन्ही के द्वारा साध्य अर्थात मकल कर्मक्षय लक्षण मोक्ष प्राप्त होगा। भावार्थ-गद्ध स्वरूप के अनुभव करने में मोक्ष की प्राप्ति है ।
प्रश्न इतना ही मोक्षमार्ग है या कुछ और भी मोक्षमार्ग है ?
उनर इतना ही मोक्ष मार्ग है। अन्य प्रकार माध्य सिद्धि नहीं ॥१६॥ दोहा - एक देखिये जानिये, रमि रहिये इक ठोर ।
समल विमल न विचारिये, यह मिति नहिं और ॥१६॥