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डॉ० सागरमल जैन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
डाक्टर सागरमल जी जैन एक संस्मरण
हजारीमल बांठिया
वर्तमान
डॉ० सागरमल जी जैन यथा नाम तथा गुण के अनुरूप ज्ञान गंगा के सागर हैं। सागर-समान उनमें मर्यादा भी है। युग में जैन श्वेताम्बर विद्वानों में इनका नाम उच्चस्थ है। आप ज्ञान, ध्यान और दर्शन की त्रिवेणी हैं। जैन दर्शन का सूक्ष्म अध्ययन कर आपने जो ज्ञान अर्जित किया है उसे अपने आलेखों के माध्यम से आम जनता को लाभान्वित किया है। पार्श्वनाथ विद्याश्रम का वर्तमान स्वरुप (पार्श्वनाथ विद्यापीठ) जो हमारे सामने है और जिससे यह मान्य विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त करने जा रहा है के मूल में प्रोफेसर सागरमल जी की अनोखी सूझ-बूझ एवं परिश्रम का ही सुफल है। बोसों शोधार्थियों को मार्ग-दर्शन कर उनको डॉक्टर (पी-एच. डी.) बनाने में आपने जो सहयोग दिया है वह सदा अभिनंदनीय रहेगा। गृहस्थ जीवन में भी रहते हुए इनका जीवन संत जीवन है जिसमें संतो की सी सादगी है।
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गच्छ गच्छेतर और जाति-धर्म का कोई भेदभाव आपमें नहीं है। जैन जैनेतर श्रावक और साधु साध्वियों को समान रूप से ज्ञान गंगाजल का अमृत पान कराया है। आप समता धर्म एवं समन्वय के पोषक हैं। यद्यपि वे अपने आपको पारिवारिक मान्यता से स्थानकवासी समुदाय से जोड़ते हैं किन्तु मैंने उनमें कहीं भी स्थानकवासीपन नहीं पाया, न कभी आमह करते देखा है । आप तो चरम तीर्थर महावीर के सच्चे अनुयायी हैं। पांचो महाव्रत के प्रेमी हैं और अहिंसा व अपरिग्रह के सजग प्रहरी हैं। चारों समुदाय के लोगों में लोकप्रिय हैं विशेषकर मूर्तिपूजक साधु-साध्वी तो आप ही से अध्ययन एवं अध्यापन में सहयोग लेते हैं।
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लगभग बीस वर्ष पूर्व गणिवर्य मुनि महिमाप्रभसागर जी महाराज अपने दो शिष्यों बाल मुनि ललित प्रभसागर जी एवं मुनि चन्द्रप्रभसागर जी के साथ कलकत्ता- बिहार में कानपुर पधारे तो मैंने उनसे अनुरोध किया । यदि मुनियों को महान् ज्ञानी एवं प्रवचनकार बनाना हो तो आप कलकत्ता चातुर्मास न कर एक नहीं चार चातुर्मास पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी में करें और डॉ० सागरमल जी का मार्गदर्शन लें। उन्होंने मेरे अनुरोध को स्वीकार कर कई चातुर्मास पार्श्वनाथ विद्याश्रम में किये और आज दोनों ही बाल मुनि महान् योगी-ज्ञानी-ध्यानी संत बन गये हैं और महावीर की वाणी को जन-जन तक पहुँचा रहे हैं।
पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी से मेरा सम्पर्क गत चालीस वर्षों से है और लगभग बीस वर्षों से डा० सागरमल जी के सम्पर्क में हूँ। मैं कई बार वाराणसी जाकर उनसे मिला हूँ और प्रेरणा प्राप्त की है। 'सादा जीवन और उच्च विचार' की उक्ति से आप का जीवन ओत प्रोत है।
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आप गुणी जनों के गुणों के ग्राहक है । पिछले दिनों जर्मनी की विदुषी जैन श्राविका डॉ० सर्लोटे क्राउ (सुभद्राकुमारी) के साहित्य-संग्रह प्रकाशन की जिज्ञासा मैंने आपके सामने रखी तो आपने तुरन्त मेरे अनुरोध को स्वीकार कर लिया और बोले डॉ० क्राउने का साहित्य संग्रहकर उसे अवश्य प्रकाश में लाना चाहिए वह उस वक्त भी उपयोगी था और आज भी उतना ही प्रासंगिक है और उसे पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी से प्रकाशित करने की सहजभाव में स्वीकृति दे दी। गुणग्राहकता का आपमें यह विशेष गुण है। डॉ० सागरमल जी जैन जैसे मनीषी का अभिनंदन कर हम सभी भारतवासी गौरवान्वित हैं। आप सदा निरोग रहें और शतायु हों यही प्रभु से मंगल कामना है।
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