Book Title: Rajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Author(s): Badriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
Publisher: Panchshil Prakashan
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असताई
अष्टकुले अष्टकुळ---(न०) १. सौ के आठ कुल। अस-(न०) अश्व । घोड़ा । (वि०) ऐसा । २. पर्वतों के आठ कुल।
असई-(वि०) असती । कुलटा। अष्टछाप-(न०) आठ सर्वोत्तम पुष्टिमार्गी असखेधो--(न0) १. झगड़ा। २. बोलकवियों का वर्ग।
चाल । विवाद । ३. छल कपट । ४. छड़अष्टधातु-(ना०) सोना, चाँदी, तांबा, छाड़।
राँगा, जस्ता सीसा, लोहा और पारा। असखेल-ना०) हंसी-मजाक । दिल्लगी। अष्ट नायिका--(ना०) काव्य शास्त्र में मसखरी।
वरिणत अवस्था भेद की तीन--मुग्धा, असगंध-(न0) अश्वगंधा नाम की एक मध्या और प्रौढा नायिकाओं के अतिरिक्त झाड़ी तथा औषधि । मासगंध । आगंध । आठ प्रकार की नायिकाएँ-स्वाधीन- असगुन--(न०) अशकुन । अपसुकन । पतिका, खंडिता, अभिसारिका, कलहांत- असगो-(वि०) १. जो सगा न हो। रिता, विप्रलब्धा, प्रोषितभर्तृका, वासक- २. जिससे रिश्ता न हो। (न०) शत्रु । सज्जा और विरहोत्कंठा ।
असज्ज-(वि०) १. असाध्य । २. तैयार अष्टपद-(न०) १. सिंह । २. मकड़ी। नहीं । सजा हुआ नहीं । ३. टूटा-फूटा । ३. सोना । सुवर्ण।
असज्जन-(वि०) १. जो सज्जन नहीं । अष्ट पहर-(ना०ब०व०) दिन-रात के आट दुष्ट । २. शत्रु ।
पहर । आठपहर का समय । पाठों पहर। असज्झ-दे० असज्ज । अष्ट भुजा-(वि०) आठ भुजाओं वाली। असट-दे० अष्ट । (ना०) दुर्गा।
असड़ी-(वि०) ऐसी ! इस प्रकार की ! अष्टमंगळी-दे० अष्ट कल्याणी । अष्ट मंगळीक-दे० अष्ट मंगळी : असड़ो--(वि०) ऐसा । इस प्रकार का । अष्टमी-दे० पाठम। अष्टसिद्धि -(ना०) पाठ सिद्धियां-अणिमा, असण-(न) १. भोजन । अंशन । महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, २. बिजली। ३. वज्र । ४. बाण । इशित्व और वशित्व।
५. अोला। अष्ट सौभाग्य - (न०ब०व०) सौभाग्यवती
असणी-(ना०) बिजली । प्रशनि । खिवरण। स्त्री के पाठ चिन्ह-(१) मांग में सिंदूर,
सडू, असत-(वि०) १. असत्य । मिथ्या । (२) ललाट पर कुकुम की टीकी (बिंदी),
२. अधर्मी । अन्य यो। ३. कायर । (३) आँख में काजल, (४) नाक में बाली
४. बुरा । खराब । ५. सड़ा हुआ । ६. सत्व(नथ), (५) कानों में कुडल, टोटी, झेला
हीन । ७ अशक्त । ८. अस्त । तिरोहित । इत्यादि, (६) गले में हार (पोतमाला),
असत धान-(न0) १. हलकी किस्म का (७) हाथों में चूड़ा, (८) पाँवों में झाँझर, कड़ले इत्यादि।
अनाज । २. नहीं खाने योग्य सड़ा-गला अष्टाध्यायी-(ना०) पाणिनीय व्याकरण अनाज। ३. अग्राह्य अनाज। ४. अधर्म का प्रधान ग्रंथ जिसमें पाठ अध्याय हैं।
की कमाई का दाना। अष्टावक्र--(10) एक प्रसिद्ध ऋषि । (वि०) असताई-(वि०) १. कायर । डरपोक । शरीर के प्राठों ही अंगों में बाँका-टेढा। बीकरण । २. सत्वहीन । ३. शक्तिहीन ।
४. झूठा।
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