Book Title: Rajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Author(s): Badriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
Publisher: Panchshil Prakashan
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उस्तो
( १६० )
ऊख
उस्तो-(न०) (उस्ताद का अपभ्रंश रूप)। उंडाई-दे० ऊंड़ाई ।
१. चित्रकार । सिलावट । ३. शिल्पी। उंडारण-दे० ऊडाण । ४. कारीगर । उस्ताद ।
उंडाळी-(वि०) गहराई वाली। गहरी । उह-(सर्व०) वह ।
ऊंडी। (ना०) १. नाभि । तूंटी। दंडी। उहाड़ो-दे० उवाड़ो।
२. मिट्टी का एक बरतन । उहास - (न०) १. प्रकाश । चमक । उंडाळो-(वि०) गहराई वाला। ऊंड़ा।
उजास । १. दंतपंक्ति की चमक । (न०) एक पात्र । उहासणो-(क्रि०) १. प्रकाश करना। उंडाँण-दे० ऊंडारण ।
२. प्रकाशित होना। ३. दंतपंक्ति का उताळ-दे० उतावळ । चमकना । ४. अति हँसना ।
उताळो-दे० उतावळो । उहि -(सर्व०) १. वहीं । २. उस । उसी। उतावळ-दे० उतावळ । उहिज-(सर्व०) १. वही । २. उस ही। उतावळो-दे० उतावळो । उसी ।
उधायलो-दे० ऊंघायलो। उही-दे० उहि ।
उंबरो-दे० ऊमरो। दे० उमराव । उहीज--दे० उहिज ।
उंबी-दे० ऊंबी। उंगळ-दे० प्राँगळ ।
उंवार-(ना०) १. झड़बेरी की टहनियों उंगळी-दे० प्राँगळी । .
का ढेर । २. खेत में से काटी हुई झड़उंगारणो-दे० ऊंघाणो।
बेरियों का लगाया हुआ ढेर । अंबार । उंगावणो दे० ऊंधावणो।
उंवारणो--दे० उवारणो । उंगीजणो-दे० ऊंघीजणो ।
उहुँ-दे० ऊहूँ।
ऊ-राजस्थानी वर्णमाला का प्रोष्ठस्थानीय ऊकरडीबाब-(न0) वह कर जो गांव की __ छठा स्वर वर्ण।
__सफाई के लिये लिया जाता है। ऊ-(सर्व०) वह।
ऊकरड़ीलाग-दे० ऊकरड़ी बाब । ऊक-(न०) बंदर ।
ऊकरड़ो-(न०) घूरा। ऊकटणो-(क्रि०) १. क्रोध करना । ऊकळणो-(क्रि०) दे० उकळणो ।
२. कसीजना । ३. आगे बढ़ना । ४. उभ- ऊकस-(वि०) गर्वोन्नत । रना। ५. शस्त्र उठाना ।
ऊकसरणो-(क्रि०) १. युद्ध करना । ऊकटो-(न०) घोड़े या ऊंट का तंग ।
२. उठना । उभरना। ३. ऊंचा उठना ।
४. गर्वोन्नत होना । ५. गर्व करना । ऊकड़त्राणो-(वि०) १. पांव समेटे हुए
ऊकेरी-(ना०) नदी या तालाब के सूख उलटा सोने की आदत वाला। उलटा ।
जाने पर वहाँ पर पानी के लिये खोदा सोने वाला । ऊकड़ताणो।।
जाने वाला खड्डा । ऊकड़ो-(संपु०) १. रंगूर । २. बंदर। ऊख-(न०) १. गन्ना। ईख । सेलड़ी। ऊकरड़ी-(ना०) छोटा पूरा ।
२. गाय भैस का स्तन प्रदेश ।
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