Book Title: Rajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Author(s): Badriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
Publisher: Panchshil Prakashan
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श्रघट
घट - (वि०) १. दुस्साध्य | कष्टसाध्य | दुर्गम २. कठिन । ३. बिना सँवारा हुआ। अस्त-व्यस्त | छिन भिन्न । प्रौड़ - दे० श्रोड़ |
परणो -- ( क्रि०) १. इस प्रकार आपस में मिलना कि बीच में कुछ भी जगह न रहे । सटना | चिपकना । भिचना | भिठना । भिचीजरगो । २. रगड़ खाना । २. घर्षण करना ।
छाड़ - ( न० ) ढँकने का वस्त्र । ढक्कन । ग्राच्छादन ।
छाड़ो - ( क्रि० ) ढँकना । श्राच्छादित
करना ।
( १८७ )
छाप - ( ना० ) बड़प्पन | महत्व | छाह - ( न०) १. उत्सव | २. उत्साह | प्रौछाही - (वि०) उत्साही । प्रौछाहो — दे० श्रौछाह । श्रौजळ - दे० प्रोजळा ।
जस-- ( न० ) अपयश | औजार- ( न० ) १. काम करने का साधन । लुहार, बढ़ई आदि शिल्पियों के काम करने का उपकरण । २ उस्तरा । पाछो ।
झड़ - ( न० ) शस्त्र प्रहार का शब्द | ( क्रि०वि० ) निरंतर । लगातार |
तार प्रहार करना ।
प्रौटारो - दे० प्रौटावणो ।
झड़ो - ( क्रि०) १. शस्त्र प्रहार करना । २. शस्त्र प्रहार का शब्द होना। ३. लगा
श्रीरंगसाह
प्रौद्रकरणो - ( क्रि०) १. डरना । भयभीत होना । २. धड़कना (दिल का ) | प्रौद्राक - ( न० ) भय । डर । प्रौद्राव - ( न० ) ग्रातंक । रौब । श्रद्राह दे० श्रौद्राव । प्रौध - ( ना० ) अवधि | समय । aौधकरणो - ( क्रि०) डरना | चौंकना । श्रधायत - ( न० प्रहदेदार | पदाधिकारी ।
- ( न० ) १. गुरुजनों की बात का दिया जाने वाला असभ्यतापूर्वक उत्तर । बड़ों को टोकना । २. उत्तर । प्रदर - दे० ोदर ।
दसा - ( ना० ) अवदशा | दुर्दशा ।
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धारणो -- ( क्रि०) १. उद्धार करना । अवधारना। २. ग्रहण करना । धारण करना । ३. उधार खाते लिखना । लेखे (लहना, लेना) लिखना । बही में उधार में किसी के नाम रकम लिखना । प्रौधो- ( न० ) प्रोहदा ।
बाजू
नाड़ - ( वि० ) १. अनम्र । २. जबरदस्त । ३. वीर । ३. गहलोत वंश का । और - ( अव्य० ) शब्द और वाक्य का एक संयोजक शब्द | ( वि० ) १. अन्य | दूसरा । निराला । अपर । अवर । २. अधिक । ज्यादा । ( क्रि०वि०) १. अतिरिक्त । सिवाय । २. फिर । पुनः ।
और है- ( अव्य० ) और ठौर । दूसरी जगह ।
औरत - ( ना० ) १. स्त्री । नारी । महिला । २. पत्नी ।
औरतो - ( न०) १. पश्चात्ताप । उरस्ताप । २. संदेह | वहम |
रवी - (वि०) दूसरा ।
टावरण - ( क्रि०) दूध यादि को प्राँच औरवियाँ - ( अव्य०) १. दूसरे लोगों को । देकर गाढ़ा करना । श्रौटाना । दूसरे लोगों के पास । ( न० ) दूसरे लोग ।
रस - ( न० ) विवाहिता पत्नी से उत्पन्न पुत्र । औरंग - ( न० ) औरंगजेब | औरंगसाह - दे० प्रवरंगसाह |
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