Book Title: Rajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Author(s): Badriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
Publisher: Panchshil Prakashan
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जीव-जंत (४४ )
जीवाणो जीव-जंत-(न०) कीड़ा-मकोड़ा । जीव-तंतु। प्राप्त होने वाला वीर योदा। (वि०) जीव-जंतु-दे० जीव-जंत ।
१. विजयी । २. वीर गति प्राप्त । जीवड़ो-(न०) १. जीव । २ आत्मा। जीवती-(वि०) १. जीवित । २. सजीव ।
३. जी । मन । ४. कीड़ा-मकोड़ा । छोटा जीवतेजीव-(अध्य०) १. जीवित रहते कीड़ा । ५. जंतु । जीव-जंतु।
हुए। जीवतावस्था में । जिंदगी में । २. जीवण-(न०) १. जीवन । २. मायुष्य । जिंदगी है जब तक। उम्र । ३. प्राण । जीवन ।
जीवतो-(वि०)१.जीता । जिंदा । जीवित । जीवणधन-(न०) १. ईश्वर । परमात्मा। २. जीव वाला । सजीव । ३. परिमाण २. स्वामी। पति । जीवन धन ।
(तोल-नाप आदि) से कुछ अधिक । जीवरणम्रत-(वि०) १. जो जीवित ही मृत जीवतोड़-(वि०) अत्यधिक कठिन ( परि
समान हो । जीवन्मृत । २. जिसका जीवन श्रम ) जीतोड़ ।
सार्थक न हो । (न०) जीवन और मृत्यु । जीवन-दे० जीवण जीवण-साथरण-(ना०) जीवन-संगिनी । जीवन चरित-(न०)१. किसी के जीवन का पत्नी ।
वृतान्त । जीवन-चरित्र । २. वह पुस्तक जीवणो-(क्रि०) १. जीना। सांस चलना। जिसमें किसी के जीवन का वृत्तान्त लिखा
२. जीवित रहना । ३. जीवन गुजारना : हुमा हो । ३. एक साहित्यिक विधा। जीवत औसर-दे० जीवत खरच । जीवन चरित्र-दे० जीवन चरित जीवत खरच-(न०)जीवित अवस्था में किया जीवनी-दे० जीवन चरित
जाने वाला प्रपना हो मृतक भोज । वह जीवरखो-(न0) १. किला। दुर्ग। २. किले मृत्यु भोज जो अपनी मृत्यु होने के पहले ___ में बुर्ज पंक्ति के बीच में उठा हुआ स्थान (जीवितावस्था) में स्वयं के द्वारा कर जिसमें युद्ध का सामान रहता है और लिया जाता है।
योद्धा लोग रहते हैं। ३ शरणागतों को जीवतदान-(न०) १. मारे जाने या मरने किले में छिपा रखने का स्थान । संरक्षण वाले की कीजाने वाली प्राण रक्षा। स्थान । ४. विद्रोही व शत्रु राजा, सरदार प्राणदान । जीवनदान । २. जीवित रहने आदि को किले में कैद रखने का स्थान । का साधन । ३. वह दान या सहायता ५. गुफा । ६. घर । ७. चोर, डाकू पाकजो किसी के जीवन भर का सहारा बन मणकारी इत्यदि से बचने के लिए सुरसके।
क्षित स्थान । ८. जीवन रक्षा । ६. शरीर । जीवत-म्रत-(वि०) १. (सार्थक) मृत्यु को जीवहिंसा-(ना०) १. जान-अनजान में होने जीवन से श्रेष्ठ समझने वाला। २. जीवित वाली प्राणी हिंसा । २. प्राणियों का ही मृत समान । (न०) जीवन और वध । हत्या। मृत्यु।
जीवाजण-(ना०) १. जीवयोनि । २. जीवजीवतसंभ-(न०) १. वीर गति प्राप्त करने जंतु । प्राणीमात्र । मनुष्य, पशु, पक्षी
पर्यन्त रुद्र रूप से लड़ते रहने वाला वीर इत्यादि प्राणी। योद्धा । २. जीवित (प्राण) रहने तक जीवाड़णो-(क्रि०) १. जीवित करना । रुद्र के समान शत्रु संहार करते रहने वाला २. मृत्यु से बचाना । ३. संकट से बचाना। वीर पुरुष । ३. जीवित ही रुद्र गति को जीवाणो-दे० जीवाड़णो।
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