Book Title: Rajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Author(s): Badriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
Publisher: Panchshil Prakashan
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द्रौपदी ( ६३१ )
घकोवरणो द्रौपदी-(ना०) राजा द्रुपद की पुत्री। पांडवों वार पाल । डोढीदार। की पत्नी।
द्वारा-(प्रव्य०) जरिया । मारफत । से । द्वद-(न०) १. झगड़ा। द्वन्द्व । २. द्वन्द्व द्वार रोकाई-दे० बार रोकाई।
युद्ध । ३. दो का जोड़ा । द्वन्द्व । ४. एक द्वारो-(न०) १. मंदिर । २. साधु-संतों का समास । (व्या०)।
स्थान । यथा--रामद्वारो। द्वात-(ना०) दवात । मसिपात्र । मजिया- द्वाळो-दे० दुपाळो। सगो।
द्विज-(वि०)१.जन्म और यज्ञोपवीतधारणद्वादशी-(ना०) बारस तिथि । बारस । इन दो संस्कारों द्वारा उत्पन्न । दो बार द्वादशो-(न०) मृतक का बारहवां । बारियो। जन्मा हुआ। (न०) १. ब्राह्मण, क्षत्री, दुपावसो।
वैश्य । त्रिवर्ण । २. ब्राह्मण । ३. पक्षी । द्वापर-(न०) चार युगों में से तीसरा युग ।
४. अंडज । ५. दांत । द्वार-(न०) दरवाजा । बारणो। द्विदळ-(न०) मूग, मोठ, चना प्रादि कठोळ द्वारका-(न०) १. द्वारिका नगरी । २. चार धान्य । द्विदल-धान्य ।
प्रधान तीर्थों में से एक। सागर तट पर द्विरद-(न०) हाथी । दुरद । स्थित सौराष्ट्र का प्रख्यात तीर्थ-क्षेत्र । द्विवेदी-(न०) ब्राह्मणों की एक अल्ल । द्वारकाधीश-(न०) श्रीकृष्ण ।
द्वेष-(न०) १. ईर्ष्या । २. बैर । शत्रुता । द्वारकानाथ-(न०) श्रीकृष्ण ।
३. जलन । द्वारपाळ-(न०)द्वार पर रहने वाला रक्षक। द्वैरद-(न०) हाथी । विरद ।
घ
ध-संस्कृत परिवार की राजस्थानी भाषा धकचाळ-(ना०) १. युद्ध । लड़ाई । २.
की वर्णमाला का उन्नीसवां और तवर्ग उपद्रव । का चौथा व्यंजन वर्ण । इसका उच्चारण धकचाळो-दे० धकचाळ । स्थान दंतमूल है।
धकरणो-(क्रि०) १. चलना । निर्वाह होना । धइयो-(न०) १. विपत्ति। संकट । आफत । २. निभाना ।
२. कष्ट । संताप । ३. टंटा-झगड़ा। धकधूरगणो-(क्रि०) जोर से हिलना । कलह ।
झकझोरना। धईडो-(न०) किसी चिंता, विपत्ति आदि धकपंख-(न०) गरुड़ ।
की अचानक सूचना । २. ऐसी झूठी धकलो आँक-दे० चढतो प्रॉक । सूचना ।
धकाणो-(क्रि०) १. निर्वाह करना । धक-(ना०) १. भय, शोक प्रादि के कारण
चलना । २. निभाना । ३. धक्का मार हृदय की गति तेज होने का शब्द । २. कर चलना। ४. खदेड़ना । ५. पीछे जोश । ३. क्रोध । ४. सहसा । ५. हटाना । ६. पराजित करना । धक्का । (क्रि०वि) एक दम । सहसा। धकार-(न०) 'घ' वर्ण । धधो । धन्धो । अचानक ।
धकावरणो-दे० धकारणो।
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