Book Title: Rajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Author(s): Badriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
Publisher: Panchshil Prakashan
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कबीर
कैमठोरण
बेंत आदि लचीली लकड़ी के दोनों आवश्यकता पर बलात् वसूल की जाने किनारों में डोरी बंधा हुप्रा बरमा फिराने वाली रकम । ४. किसी अपराध पर का एक साधन । कमानी। छेद करने रईसों से वसूल किया जाने वाला दंड। के लिये बरमे को घुमाने की कमानी। कबूली-(ना०) १. नमक मसाले और भालू ५. मेहराब ।
आदि डालकर बनाया जाने वाला चावलों कबीर-(न०) एक प्रसिद्ध निर्गुणपंथी संत का एक खाद्य-पदार्थ । २. स्वीकृति ।
जो जाति से मुसलमान जुलाहे थे। (इन्हीं ३. विजय के रूप में लिया जाने वाला के नाम से कबीरपंथ चल रहा है)। खर्चा या दंड दे० कबूलात । कबीरपंथी-(न०) १. कबीर पंथ का अनु- कबोल-(न०) कुवचन ।
यायी । २. कबीर पंथी साधु । कबोलो-(वि०) कुवचन बोलने वाला । कबीरी-(ना०) १. गुजरान । गुजारा। कब्जी-(ना०) कन्जी । मलावरोध । कोष्टनिर्वाह । २. उदरपूर्ति का काम । ३. बद्धता । पेट भराई । ४. धंधा । छोटा मोटा रोज- कब्जो-(न०) १. अधिकार । कब्जा । स्वत्व ।
गार । ५. गरीबी । ६. फक्कड़ जीवन । २. किंवाड़ आदि में पेंच से जड़ा जाने कबीलेदार-(वि०) परिवार वाला। वाला एक उपकरण । ३. स्त्रियों के कबीलो-(न०) १. जनाना । रनिवास । पहिनने का एक वस्त्र । २. परिवार । कुटुंब ।
कभागरण-(वि०) अभागिनी । प्रभागरण । कबू-(न०) १. कबूतर । कपोत । कभागियो-(वि०) प्रभागा । प्रभागो। कबूतर-(न०) पारेवा । कपोत । (वि०) कभागी-(वि०) १. प्रभाग। अभागियो । गरीब ।
२. प्रभागरण । कबूतर खानो-(न०) १. कबूतरों को रखने कभारजा-दे० कुभारजा ।
का पिंजरा । २. गरीबखाना। अनाथा- कभाव-दे० कुभाव। श्रम । (वि०) गरीब । दीन।
कम-(वि०) थोड़ा । अल्प । थोड़ो। कबूतरी-(ना.) १. नट की स्त्री। २. अद्- कम अकल-(ना०) कम बुद्धि का । मूर्ख । भुत नट कला के करतब दिखाने वाली कम असल-दे० कमसल । नटनी । ३. कपोती। पारेवी।
कमख-(न०) १. पाप । कल्मष । कबुल-(न०) स्वीकार । अंगीकार ।
३. हमला । ४. उत्कंठा। कबूलगो-(क्रि०) स्वीकार करना । मंजूर कमची-(ना०) बेंत । छड़ी।
कमजात-(वि०) कम असल। कबूलात-(ना०) १. स्वीकृति । मंजूर। कमजादा-(वि०) न्यूनाधिक ।
२. एक बिन अपराध की प्राचीन दंड कमजोर-(वि०) अशक्त । दुर्बल। प्रथा जिसके अंतर्गत राजा किसी भी कमजोरी-(ना०) अशक्ति । दुर्बलता। जागीरदार, धनाढ्य या प्रतिष्ठित व्यक्ति कमज्या-(ना०)१.कमाई । २.कर्म । ३.जीवन से अपनी जरूरत की बड़ी से बड़ी रकम के अच्छे-बुरे कर्म । ४. परिश्रम । मजदूरी। वसूल कर सकता था। ३. किसी धनाढय कम ज्यादा-(वि०) न्यूनाधिक । प्रोछो वत्तो। व्यक्ति, दीवान प्रादि बड़े पदाधिकारी या कमठ-(न०) १. कच्छप । २. धनुष । जागीरवार मादि से राजा के द्वारा अपनी कमठाण-(न०) १. मकान । महल ।
करना।
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