Book Title: Rajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Author(s): Badriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
Publisher: Panchshil Prakashan
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चामचोर ( ३७२ )
चारभुज चामचोर-(वि०) व्यभिचारी।
चारखाणी-(ना०) जरायुज, उद्भिज, अंडज चामचोरी-(ना०) व्यभिचार । पर स्त्री और स्वेदज प्राणियों के उत्पन्न होने के ___ गमन ।
ये चार प्रकार। चामजू-दे० चमजू।
चारखूट-(ना०) १. चारों दिशाएँ। २. चामड़ियाळ-(न०) मुसलमान ।
चौखूट। चामडियो-(न0) चमड़े का काम करने चार चाँद लागणो-(मुहा०)प्रतिष्ठा, शोभा
वाला । चमार । चर्मकार । खालड़ियो। इत्यादि में वृद्धि होना । चामड़ी-(ना०) चमड़ी।
चार-छाँतो-(न०)घास, कड़बी आदि पशुओं
___ के चरने की सामग्री। चार-डोको । चामड़ो-(न०) १. चमड़ा। खाल । २..
चारो। त्वचा। चमड़ी। ३. मरे हुए पशु का चमड़ा । खालड़ो।
चारजामो-(न०) घोड़े या ऊंट की पीठ पर चामण-(ना०) आँख ।
___ कसा जाने वाला सवारी के लिए प्रासन ।
चारडोको-(न०) अन्न के अतिरिक्त कृषि चामणी-दे० चामण। चामर-दे० चवर।
द्वारा प्राप्त होने वाला पशुओं के लिये
घास चारा आदि। खेती से उत्पन्न होने चामरस-(न०) संभोग सुख । चामसुख-दे० चामरस ।
वाले नाज का अतिरिक्त भाग । कड़बी।
कड़ब चार-छाँतो। चामरियाळ-(न०) १. मुर,लमान । २.
चारण-(न०) १. क्षत्रियों का यशोगान घोड़ा।
करने वाली एक जाति । २. इस जाति का चामरी-(न०) घोड़ा।
मनुष्य । चामळ-(ना०) चम्बल नदी।।
चारणिया वंट-(न०)जागीरी की वह प्रथा चामीकर-(न०) सोना । सुवर्ण ।
जिसमें (पाटवी और थाटवी)सभी भाइयों चामीर-दे० चामीकर ।
में जागीरी व भूमि का समान बंटवारा चामुडा-(ना०) चामुंडा देवी । दुर्गा का
किया जाता है। सभी भाइयों में गांव एक स्वरूप ।
और जमीन के समान बँटवारे की प्रथा । चामोटो-दे० चमोटो।
चारणी-(ना०) १. चारण की स्त्री। २. चाय-(ना०) १. एक पौधा तथा उसकी
चालनी । (वि०) चारण संबंधी। पत्तियां । २. इस पौधे की सूखी पत्तियों
चारणो-(क्रि०) चराना । घास खिलाना। को गरम पानी में डालकर बनाया जाने
(न०) चालना । बड़ी चलनी । वाला गरम पेय ।
चार धाम-(न०) भारत की चार दिशामों चायना-(ना०) १. चाहना । इच्छा । २. में चार बड़े तीर्थ-पूर्व में जगन्नाथपुरी, मावश्यकता ।
दक्षिण में रामेश्वर, पश्चिम में द्वारका, चायलवाड़ो-(न०)बीकानेर जिले का चायल
और उत्तर में बदरीनाथ । जाति के जाटों का प्रदेश ।
चारपाई-(ना०) खाट । माचो । चार-(वि०) तीन और एक । (न०) चार चारभुजा-(न०) राजस्थान का एक प्रसिद्ध की संख्या । '४' (ना०) घास । चारो। तीर्थ स्थान । वल्लभ संप्रदाय का एक
तीर्थ स्थान ।२. चारभुजा भगवान ।
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