Book Title: Rajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Author(s): Badriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
Publisher: Panchshil Prakashan
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चिळकरणो
( ३८० )
चीक
१.
चिळकरणो - ( क्रि०) चमकना । ( न० ) प्रकाश । चमक । २. प्रतिबिम्ब । प्रति प्रभा । श्रक्स (विo ) चमकने वाला । चिळकी - ( ना० ) १. चमक । प्राभा ।
चिहुए वळाँ - ( क्रि०वि०) चारों भोर । चिहुँवे - ( वि०) चारों । चारों ही । चिश्रो- ( न० ) इमली का बीज । कूं को । कूं गो ।
२. पॉलिश ।
चिंगरण - दे० चरण |
चिळको- ( न० ) १. चमक । २. प्रकाश । चिंघाड़ - ( ना० ) हाथी की बोली । हाथी की चिल्लाहट ।
३. प्रतिबिंब ।
चिलगोजो - ( न०) चीड़ वृक्ष का फल । एक चिंघाड़णो - ( क्रि०) हाथी का चिल्लाना । मेवा | नेवज । नोजा । नेजो ।
चिलड़ो - दे० चीलड़ो | चिलम - ( ना० ) १. तंबाकू पीने का लकड़ी या मिट्टी का बना एक उपकरण । सुलफी । २. हुक्के का वह मिट्टी का पात्र जिसमें तमाकू और श्राग रखी रहती है। चिलम पीरणो - ( मुहा० ) चिलम में रखी
हुई तमाखू के धुएँ को मुँह से खींचना | चिलमपोस - ( न०) चिलम का ढक्कन । चिलम भरणो - ( मुहा० ) पीने के लिये
चिलम में तंबाकू और आग रखना । चिलमियो- ( न० ) १. चिलम या हुक्के में तंबाकू भरने, उस पर श्राग रखने और पीने आदि की क्रियाएँ । २. चिलम की नली में रखा जाने वाला कंकड़ | चुगल | ३. चिलम में प्राग रखने की क्रिया । चिलो - ( न० ) १. धनुष की डोरी । चिल्ला । प्रत्यंचा । २. मुसलमानों का चालीस दिनों का एक व्रत । चिल्ला । चिल्लारगो - ( क्रि०) १. चीखना । चिल्लाना ।
२. जोर-जोर से बोलना ।
चिह्न - ( न० ) १. चिन्ह । निशान । २.
वृत्तान्त | हाल | चिहापणो - ( न० ) पश्चाताप | पछतावो । ( क्रि० ) पछताना | पछतावा करना । पछतावरणो ।
पछतावा ।
चिहापो - ( न० ) पश्चाताप । चिर - ( न०) १. सर के केश । चिकुर । २. केश ।
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चिंघाड़ना ।
चिंत - ( ना० ) १. चिंता । फिक्र । फिकर । २. याद । ३. विचार ।
चिंतक - (वि०) चिंतन या मनन करने वाला । चिंतरण - दे० चिंतन | चितरणो - दे० चितवरणो ।
चिंतन - ( न० ) १. ध्यान । २. विचार । मनन । ३. विवेचना । चितवरण - दे० चितवन ।
चितवरणो - ( क्रि०) १. मनन करना । २. निश्चय करना । ३. याद रखना । ४. चिंता करना । ५. सोचना । चिंतन करना । ६. विचार करना । चितवन- ( न० ) चिंतन । चितवियोड़ो- (वि०) १. निश्चय किया
हुआ । २. सोचा हुआ । विचारा हुआ । चिंता - ( ना० ) १. चिंता । फिकर । २.
विचार | सोच |
चिंताजनक - (वि) चिता उत्पन्न करने
वाला ।
चितामरिण - ( ना० ) अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला एक काल्पनिक रत्न । चित्या- दे० चिंता | चिंदी - दे० चींधी | चींदी ।
ची - ( प्रत्य०) 'चो' विभक्ति का नारी जाति रूप | छठी विभक्ति । की । चीक - ( न०) स्वर्णकारी में काम आने वाला मेथी दाना और सुहागा का उकाला हुआ पानी । २. वनस्पति के फल, टहनी आदि
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