Book Title: Rajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Author(s): Badriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
Publisher: Panchshil Prakashan
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घोसण
प्रायः कई मनुष्यों द्वारा स्वभावतः बोला जाने वाला एक सम्पुट । ( अव्य० ) १. अस्तु । प्रच्छु | अच्छा । भला । खैर । २. न्योछावर होता हूँ । वारी जाऊं । उत्सर्ग करता हूं । ३. उत्सर्ग होता हूं बलि जाता हूं । ४. उत्सर्ग हुआ । निछावर हो गया ।
( ३५४ )
घोसरण - ( ना० ) १. घोसी की स्त्री । २.
घोसी जाति की स्त्री । घोसी - ( न० ) १. गायें रखने वाला ।
ङ - संस्कृत परिवार की राजस्थानी वर्णमाला के क वर्ग का पाँचवां व्यंजन वर्णं । इसका उच्चारण-स्थान कंठ और नासिका है । महाजनी में इसका उच्चारण
च - संस्कृत परिवार की राजस्थानी वर्णं माला के चवर्ग का तालुस्थानीय पहला व्यंजन |
च
च - ( अव्य० ) १. और । अन्य । २. एक पद पूरणर्थिक वर्ण । ( न० ) १. मुख । २. चन्द्रमा । ३. अग्नि । चइ - ( अव्य०)
'चे' विभक्ति का एक रूप |
के । चइलो - दे० चीलो |
चड़ - ( ना० ) हल का एक उपकरण । (श्रव्य०) संबंध सूचक ( षष्टी) विभक्ति का एक चिन्ह | राजस्थानी की 'चो' और हिन्दी की 'का' विभक्ति का अपभ्रंश रूप । चक दे० चोक ।
-
चउगरणउ दे चौगुणो ।
चकचूर
घोषिन् । २. गूजर । ३. गायें रख कर उनके दूध को बेचने का धंधा करने वाली एक मुसलमान जाति । ४. इस जाति का व्यक्ति ।
घोंघाट - ( न० ) कान में होने वाला घों-घों
का शब्द |
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धरणा - ( ना० ) घृणा । ग्लानि । नफरत ।
घ्रत - ( न० ) घृत | घी । घोणी - ( न० ) शूकर । सूत्रर ।
'ड़' होता है । पोसाळ ( पाठशाला) की बालभाषा में इसे ' रडियो ऊमणो- दूमणो' कहते हैं । 'ङ' या 'ड़' का शब्द के आदि में प्रयोग नहीं होता |
चउथ दे० चौथ । चउद - (वि०) चौदह । '१४' चउपई - दे० चौपाई | चट्ट - दे० चोहटो |
चऊ - ( ना० ) हल का एक उपकरण । चक - ( न० ) १. एक अस्त्र । चक्र । २. पहिया । ३. चकवा पक्षी । ४. जमीन का बड़ा टुकड़ा । ५. दिशा । ( वि०) चकित | अचंभित । ( ना० ) और तरफ । चकचक - ( ना० ) १. निंदा । चर्चा । २. लोकापवाद । ३. बकबक । ४. पक्षियों की चहचहाट |
चकचाळो - ( न०) १. युद्ध । २. उत्पात ।
उपद्रव ।
चकचूर - ( न० ) १. नाश । चकनाचूर |
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