Book Title: Rajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Author(s): Badriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
Publisher: Panchshil Prakashan
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चरपराट ( ३६३ )
चर्मकार चरपराट-(न०) १. गर्व । तरमराट । २. चराणो-(कि०) चराना। घास खिलाना। - स्वाद में तीखापन । ३. घाव की जलन । चरावरणो । चरपराणो-(क्रि०)१.जलन होना। २.तीखा चरावणो-दे० चराणो। लगना । चरवरगो।
चरित-(न०) १. आचरण । वर्तन । व्यचरपरो-(वि०) १. तीखे स्वाद वाला। वहार । २. चरित्र । ३. रीति नीति ।
चरपरा। चरचरो। २. बहुत बोलने ४. वृत्तान्त । हाल । ५. जीवनी । ६. वाला।
पाखंड । ढोंग । ६. करमी । करतूत । चरबरण-(न०) चबैना । चबीणो।
८. कपट । चरबी-(ना०) मेद । वसा । चरबी। चरिताळी-दे० चिरताळी । चरभर-(न०) एक खेल । 'सरभर' नाम का चरिताळो-दे० चिरताळो । खेल।
चरित्र-दे० चरित। चरम-(वि०) १. अंतिम । २.पराकाष्टा का। चरित्रवान-(वि०) उत्तम चरित्र वाला। दे० चर्म ।
सदाचारी। चरमराट-(ना०) १. जलन । २. अकड़। चरी-(ना०)१. घास । चारा । २.हरी ज्वार चरम-समाध-(ना०) संभोग ।
आदि का चारा । ३. चरने की क्रिया । चरमी-दे० चिरमी।
४. घास वाली जगह । चरागाह । ५. एक चरवरणो-(क्रि०) घाव का चर्राना । जलन जळ पात्र । चरवी। होना।
चरू-(न०) चौड़े मुह का एक बरतन। देग । चरवादार-दे० चरवंदार।
देगड़ो। चरवी-(ना०) पीतल का एक जल पात्र । चरू-सुगाळ-(न०) १. अधिक अतिथियों चरदार-(न०) घोड़ों की देखभाल करने के आवागमन के कारण वह स्थिति वाला या जंगल में जाकर चराने फिराने जिसमें हर समय भोजन बनाना चालू ही वाला नौकर । सईस । चरवादार । रहता है। २. वह नियम जिसमें प्राने चरवो-(10) तांबे या पीतल का एक बड़ा वाला कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं जा जलपात्र । चरू । देग ।
सके । ३. किसी भी समय किसी भी चरस-(ना०) १. तीव्र इच्छा । उत्कट अतिथि या अनाथ के आ जाने पर भोजन
चाह । २. परम्परा । अनुक्रम । ३. किये बिना नहीं जाने देने की उदारता । उत्साह । उमंग । (न०) १. एक मादक ४. अतिथि सेवा की वह व्यवस्था जिसमें पदार्थ जो तंबाकू की तरह चिलम में रख किसी भी समय कोई भी आये भोजन कर धुएं के रूप में पिया जाता है । गाँजे किये बिना नहीं जा सकेगा। का गोंद । २. मोट । चरसा। कोश। चर्चरी-(ना०) १. आनंद । २. उत्सव । (वि०) बढ़िया । अच्छा।
३. होली पर नाच-गान के साथ गाई चराई-(ना०) १. चरवाने की मजदूरी। जाने वाली फाग रागिनी। २. चराने का काम।
चर्चा-दे० चरचा। चराक--(न0) चिराग । दीपक। चर्म-(न०) चमड़ा। त्वचा । चामड़ो। चराचर-(वि०) स्थावर और जंगम । जड़ खालड़ो।
मौर चेतन । चर-अचर । (न०) जगत। चर्मकार-(न०) १. चमार । २. मोची।
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