Book Title: Rajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Author(s): Badriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
Publisher: Panchshil Prakashan
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कळाप ( २१२ )
फळीजको कळाप-(न०) १. समूह । २. रुदन । ३. कळिभीम-(न०) कलियुगी भीम। दुःख । विलाप । ४. तरकश । तूणीर । कलिमल-(न०) कलि का मैल । पाप ।
५. मोर की पांखों का छत्र । ६. भौंरा। कळिमूळ-दे० कळमूळ । कळापाती-(वि०) १. कपटी । छली । २. कलियळ-(न०) १. क्रौंच पक्षी के बोलने चंचल । उत्पाती।
का शब्द । कलरव । कळापी-(न०) १. मोर । २. कोयल। कळियार-दे० कळिमूळ । कलाबातू-(न०) रेशम के धागे पर लपेटा कलियुग-(न०) चार युगों में का अंतिम युग । हुआ सोने या चांदी का बारीक तार ।।
अधर्म युग। कलाबत्त ।
कळियो-दे० कुळियो । दे० कलसियो । कळायण-(ना०) १. काली मेध-घटा । कळिहिवा-(अव्य०) युद्ध करने के लिए।
कांठळ । २. वर्षा का एक लोक गीत । कलिग-(न०) १ एक प्राचीन जन पद का कलाळ-(न०) १. कलाल जाति का व्यक्ति। नाम । २. एक असुर का नाम । किलंग।
२. शराब बनाने या बेचने वाली जाति । कळी-(ना०) १. बिना खिला हुमा पुष्प । कलवार।
कलिका । २. कुरते आदि में काँख में कलाळण-(ना०) १. कलाल जाति की स्त्री।। ळगने वाला तिकोना कपड़ा। ३. नीचे २. कलाल की स्त्री.
की भोर (तले में) शंकु वाला (नुकीला) कलाळी-(ना०) १. एक लोक गीत । २. पाम के आकार का हुक्के का जलपात्र । कलाल जाति की स्त्री।
४. कळी वाला जस्त का बना हुआ हुक्का । कलावंत-(न०) १. गायक । २. कलाकार। ५. कलई नाम की धातु । ६. कलई का
३. नट । ४. एक संगीतज्ञ जाति । ५. मुलम्मा। ७. दीवाल में सफेदी करने इस जाति का व्यक्ति । ६. संगीतज्ञों की तथा पान में खाने प्रादि के काम में प्राने उपाधि ।
वाला कंकड़ रहित चूने का बारीक चूर्ण । कळावान-(वि०) १. चतुर । प्रवीण । २. ८. शुरु में फूटने (पाने) वाले मूछ-दाढ़ी
छली। कपटी। ३. धूर्त । ४. कला के बाल । ६ दर्पण में एक ओर किया जानने वाला।
गया पारे आदि का लेप। १०. नाक में कलावो-(न0) हाथी की गरदन । कलावा।। से बाल निकालने का नाई का औजार । कळाहीण-(वि०)१. अज्ञ । मूर्ख । अबूझ । ११. घाघरे या जामे का पल्ला जो गाव२. अशक्त । ३. कला रहित ।
दुम (ऊपर की ओर से सैकड़ा और नीचे कला-(वि०) १. बड़ा (गाँव) ।
की अोर क्रमशः चौड़ा होता हुआ) होता कळि-(न०) १. युद्ध । २. कलियुग । (अव्य०) है, जिससे घाघरे या जामे की बनावट लिये । हेतु।
नीचे से घेरदार बनती है . (एक घाघरे कळिकाळ-(न०) कलियुग का समय ।
या जामे में २० से १०० कलियां तक अधर्म का समय।
होती हैं ।) १२. तरह । प्रकार । (वि०) कळिचाळो-दे० कळचाळो।
१. सुन्दर । २. समान । (क्रि० वि०) कळि पत्थ-(न०) कलियुगी अर्जुन । कलि- तरह । भाँति । पार्थ ।
कळीजणो-(क्रि०) १. कीच में फंसना । २. कळिपाथ-दे० कळि पत्थ ।
घर-गृहस्थी या सांसारिक कामों में उल
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