Book Title: Rajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Author(s): Badriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
Publisher: Panchshil Prakashan
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उसाइ-पछाड़ ( १३५ )
उगवणो उखाड़-पछाड़-(ना.) १. भांग तोड़। उगणसाठो-(न०) उनसाठवां वर्ष ।
२. उथल-पुथल । तितर-बितर । ३. छिन्न- उगणंतर-(वि०) साठ और नौ। (न०) भिन्न । ४. बखेड़ा। उपद्रव ।
उनहत्तर की संख्या-६६' । उखाणो-(न०) १. उपाख्यान । अोखाणो। उगणंतरो-(न०) उनहत्तरवाँ वर्ष ।
२. कहावत । ३ उक्ति । ४. दृष्टान्त । उगणासियो-दे० उगणियासियो । उदाहरण ।
उगणासी-दे० उगणियासी । उखेख-(न०) क्रोध ।
उगणियासियो-(न0) उनासीवाँ वर्ष । उखेखणो-(क्रि०) १. क्रोध करना । उगणियासी-(वि०) सित्तर और नौ। २. देखना।
(न0) उनासी की संख्या-७६' । उखेड़णो–दे० उखाड़णो।
उगणी-दे० उगणीस । उखेल-(न०) १. उत्पात । २. युद्ध । उगणीस-(वि०) दस और नौ। (न०) ३. कलह । ४. उत्खनन।।
___ उन्नीस की संख्या-'१६' । (वि०) हलके उखेलणो-(क्रि०) १. रस्सी पगड़ी आदि दर्जे का । उतरता हुआ । खराब । के आंटों को खोलना। २. अपने स्थान उगरणीसो- (न०) उन्नीसवाँ वर्ष । (वि०) से अलग करना। उखेड़ना । ३. परस्पर १. उन्नीस सौ। एक हजार नौ सौ । चिपटी हुई वस्तुओं को अलग करना। २. जो तुलना में खराब हो । बदतर । दे० उखाड़णो सं० १, २।
उगणोतर-दे० उगणंतर । उखेवणो-(क्रि०) देवता के सामने धूप- उगणोतरो-दे० उगणंतरो।
अगरबत्ती जलाना । धूप खेना। उगत- दे० उकत । उगटगो-(क्रि०) कसाव उठना । कसेला- उगम--(ना०) १. उद्गम । उदय । पन पैदा होना । (न0) उबटन ।
२. उत्पत्ति । ३. अंकुरण । उगण चाळी-दे० उगण चाळीस ।
उगमण-(ना०) पूर्व दिशा । उगरण चाळीस-(वि०) तीस और नौ। उगमणू-(क्रि०वि०) १. पूर्व दिशा की ओर (न०) उनताळीस की संख्या-'३६'
(वि०) पूर्व दिशा का । (न०) पूर्व दिशा । उगण चाळीसो- (न०) उनचालीसवाँ वर्ष ।
जो उगमणो-दे० उगमणू। उगणती-(वि०) बीस और नौ। (न०)
उगरणो-(क्रि०) उबरना । बचना । उनतीस की संख्या-'२६' ।
उगरांटो-दे० अगरांटो। उगरगतीस-दे० उगणती।
उगरामणो-(क्रि०) प्रहार करने के लिये
___ शस्त्र उठाना । हाथ उठाना। उगणत्रीस-दे० उगणती।
उगळरणो-(क्रि०) १. उगलना। २. जुगाली उगणतीसो-(न०) उनतीसवाँ वर्ष ।
__करना। ३. के करना। वमन करना। उगणपचा-दे० उगण पचास ।
४. वमन होना । उलटी होना। उगणपचास-(वि०) चालीस और नौ। उगळाणी-(वि०) नग्न । नंगी । विवस्त्र । (न०) उनचास की संख्या-'४६' ।
उघाड़ी। (ना०) कै । उलटी । उगाळ । उगरणपचासो-(न०) उनचासवां वर्ष। उगळागो-(क्रि०) 'उगळाणी' का पुल्लिग । उगणवो-दे० उगवणो ।
(क्रि०) के होना । उलटी होना । उगणसाठ-(वि०) पचास और नौ। (न०) उगवणो- (क्रि०वि०) पूर्व दिशा में । पूर्व उनसाठ की संख्या-'५६' ।
दिशा की ओर।
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