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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उसाइ-पछाड़ ( १३५ ) उगवणो उखाड़-पछाड़-(ना.) १. भांग तोड़। उगणसाठो-(न०) उनसाठवां वर्ष । २. उथल-पुथल । तितर-बितर । ३. छिन्न- उगणंतर-(वि०) साठ और नौ। (न०) भिन्न । ४. बखेड़ा। उपद्रव । उनहत्तर की संख्या-६६' । उखाणो-(न०) १. उपाख्यान । अोखाणो। उगणंतरो-(न०) उनहत्तरवाँ वर्ष । २. कहावत । ३ उक्ति । ४. दृष्टान्त । उगणासियो-दे० उगणियासियो । उदाहरण । उगणासी-दे० उगणियासी । उखेख-(न०) क्रोध । उगणियासियो-(न0) उनासीवाँ वर्ष । उखेखणो-(क्रि०) १. क्रोध करना । उगणियासी-(वि०) सित्तर और नौ। २. देखना। (न0) उनासी की संख्या-७६' । उखेड़णो–दे० उखाड़णो। उगणी-दे० उगणीस । उखेल-(न०) १. उत्पात । २. युद्ध । उगणीस-(वि०) दस और नौ। (न०) ३. कलह । ४. उत्खनन।। ___ उन्नीस की संख्या-'१६' । (वि०) हलके उखेलणो-(क्रि०) १. रस्सी पगड़ी आदि दर्जे का । उतरता हुआ । खराब । के आंटों को खोलना। २. अपने स्थान उगरणीसो- (न०) उन्नीसवाँ वर्ष । (वि०) से अलग करना। उखेड़ना । ३. परस्पर १. उन्नीस सौ। एक हजार नौ सौ । चिपटी हुई वस्तुओं को अलग करना। २. जो तुलना में खराब हो । बदतर । दे० उखाड़णो सं० १, २। उगणोतर-दे० उगणंतर । उखेवणो-(क्रि०) देवता के सामने धूप- उगणोतरो-दे० उगणंतरो। अगरबत्ती जलाना । धूप खेना। उगत- दे० उकत । उगटगो-(क्रि०) कसाव उठना । कसेला- उगम--(ना०) १. उद्गम । उदय । पन पैदा होना । (न0) उबटन । २. उत्पत्ति । ३. अंकुरण । उगण चाळी-दे० उगण चाळीस । उगमण-(ना०) पूर्व दिशा । उगरण चाळीस-(वि०) तीस और नौ। उगमणू-(क्रि०वि०) १. पूर्व दिशा की ओर (न०) उनताळीस की संख्या-'३६' (वि०) पूर्व दिशा का । (न०) पूर्व दिशा । उगण चाळीसो- (न०) उनचालीसवाँ वर्ष । जो उगमणो-दे० उगमणू। उगणती-(वि०) बीस और नौ। (न०) उगरणो-(क्रि०) उबरना । बचना । उनतीस की संख्या-'२६' । उगरांटो-दे० अगरांटो। उगरगतीस-दे० उगणती। उगरामणो-(क्रि०) प्रहार करने के लिये ___ शस्त्र उठाना । हाथ उठाना। उगणत्रीस-दे० उगणती। उगळरणो-(क्रि०) १. उगलना। २. जुगाली उगणतीसो-(न०) उनतीसवाँ वर्ष । __करना। ३. के करना। वमन करना। उगणपचा-दे० उगण पचास । ४. वमन होना । उलटी होना। उगणपचास-(वि०) चालीस और नौ। उगळाणी-(वि०) नग्न । नंगी । विवस्त्र । (न०) उनचास की संख्या-'४६' । उघाड़ी। (ना०) कै । उलटी । उगाळ । उगरणपचासो-(न०) उनचासवां वर्ष। उगळागो-(क्रि०) 'उगळाणी' का पुल्लिग । उगणवो-दे० उगवणो । (क्रि०) के होना । उलटी होना । उगणसाठ-(वि०) पचास और नौ। (न०) उगवणो- (क्रि०वि०) पूर्व दिशा में । पूर्व उनसाठ की संख्या-'५६' । दिशा की ओर। For Private and Personal Use Only
SR No.020590
Book TitleRajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
PublisherPanchshil Prakashan
Publication Year1993
Total Pages723
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size12 MB
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