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पुरुषार्था
तत्त्वयि विषय जिन्हें विभाव हे व ये हैं- (१) नैयायिक ( २ ) वैशेषिक, ( ३ ) सांख्य, (४) मीमांसक, ( ५ ) वेदान्ती, (६) चार्वाक और ( ७ ) बीद्ध 1 इनके विवादों और स्याद्वाद द्वारा किये गये समाधानोंको आगे कहा जायेगा || २ ||
आचार्य मंगलाचरण करनेके पश्चात् अपना ध्येय बतलाते हैं ---
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लोकत्रयैकनेत्र निरूप्य परमागमं प्रयत्नेन । अस्माभिरुपोद्भियते विदुषां पुरुषार्थसिद्धयुपायोग्यम् ॥ ३॥
पथ
dinate अनुपम जो है re ga ऐसा परमागम मंथनकर, निज उद्देश्य है उद्देश्य अचार निश्चित, विद्वानोंके आत्म-प्रयोजन सिद्धिकरनका, मूलमंत्र है
deer है । बताना है ॥ . लिये अहो ! 'धर्म' गहो ॥ ५ ॥
अन्य अर्थ[ लोक ये क्रमे ] तीनों लोकोंको बताने वाले अर्थात् उनका स्वरूप आदि कहने वाले अद्वितीय नेत्रके समान [परमाम प्रयत्नेन निरूप्य ] परमागम या द्वादशांगरूप जिन वाणीका गहरा प्रयत्नपूर्वक अध्ययन या अभ्यास करके उसका [ अस्माभिः ] हम [ अयोधियते ] उपदेश देते हैं क्योंकि [ अयं विदुषां पुरुषार्थसिद्घुपायः ] यही धर्मोपदेश, विद्वानों या विवेकियों( समझदार जीवों ) के लिये अपने इष्ट प्रयोजनकी सिद्धिका उपाय ( मार्ग ) है, इसके अतरिक दूसरा कोई उपाय नहीं है । अर्थात् उस परमागमका दोहनपूर्वक उसीसे प्रस्तुत पुरुषार्थसिद्ध छुपाय free rent उद्धृत किया जाता है में स्वयं उसका कर्त्ता नहीं हूँ || ३ |
भावार्थ--- करुणासागर आचार्य संसारी भव्य जीवोंका हित करनेके उद्देश्यसे इस ग्रन्थकी रचना करके उसके द्वारा सत्यार्थ ( निश्चय ) धर्मका निरूपण कर रहे हैं अथवा उपदेश दे रहे हैं । और वह भी उपदेश, तब दे रहे हैं, जबकि उन्होंने द्वादशांग जिनवाणी ( परमागम ) का पर्याप्त अध्ययन या मंथन करके सारभूत धर्मरत्नको प्राप्त कर लिया है एवं अनुभव प्राप्त कर चुके हैं । ऐसा करने या बतानेका प्रयोजन सिर्फ प्रामाणिकता लानेका है, रूपाति आदि चाहनेका नहीं है । इससे वह उपदेश विश्वसनीय माना जाता है । तथा यह प्रात विद्वान् समझदार ही समझ सकते हैं और वे ही उसको अपना सकते या पाल सकते हैं, यह तात्पर्य है । यों तो अनादिकाल से संसारी जीव सच्चे ( सत्यार्थ ) उपदेशके बिना भूलभटक रहे हैं, पार नहीं हो पाये हैं । नहीं मालूम कितनी बार निमित्त मिले परन्तु उनसे अज्ञानतावश लाभ नहीं उठा पाया, व्यर्थ ही काल गमाया | आचार्य महाराजने यही सब सोच-विचार कर यह प्रयास किया है कि संज्ञीपंचेfrom fart मनुष्य तो हित-अहित को समझें और जो अनादिसे चाह रहे है उसकी प्राप्त करें । are प्रत्येक प्राणीको सुख-शान्ति प्राप्त होनेकी है और दुःख व अशान्ति नष्ट होने की है । परन्तु