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के पूर्व ) आपको उपाध्याय पद से अलंकृत किया । सम्वत् १८५८५६ में आप गच्छ नायक के साथ जैसलमेर में ही थे ।
ग्रन्थ निर्माण
व्याकररण, न्याय प्रादि में श्रापका अच्छा पांडित्य था ही पर जैन सिद्धांतों (आगमों) के गूढ़ रहस्यों को भी जानने में आपकी असाधारण गति थी । खरतर गच्छ में उस समय आप सर्वोपरि गीतार्थ माने जाते थे । अनेकों विद्वान् अपने प्रश्नों या सन्देहों का समाधान आपसे करते थे । गच्छनायक आचार्य भी आपकी सैद्धान्तिक सम्मति का बहुमूल्य समझते थे। कई यतियों ने आपके पास विद्याध्ययन कर पांडित्य और गीतार्थता प्राप्त की थी । प्रश्नों के सप्रमाण उत्तर देने में या निराकरण करने में आप सिद्धहस्त थे । 'प्रश्नोत्तर सार्द्धशतक' के अतिरिक्त छुटकर सेंक्डों प्रश्नों के उत्तर प्रापके लिखित यहां के महिमा भक्ति भण्डार श्रादि में विद्यमान हैं। उनमें कई-कई प्रश्न तो इतने जटिल जौर विचारणीय हैं कि उनका समुचित उत्तर देने वाले अब बहुत ही कम मिलेंगे ।
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आपके रचित ग्रन्थों की सूची सम्वतानुक्रम से इस प्रकार है
सम्वत् १८२६
माधव ३,
शंखेश्वर स्तवन प्र०
१८२७ वैशाख शुक्ल १२, सूरत, शीतल, सहस फरणा पार्श्व स्त० गाथा ११ प्र०
सूरत, तर्क संग्रह फक्किका प्र०
१८२८
१८२६ चैत्र वदि ९, राजनगर, भु धातु वृति
१८२६
राजनगर, गौतमीय काव्य वृति
प्रारम्भ प्र०
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