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( १६ ) वह भगवान को प्राज्ञा के अनुसार है या आज्ञा के
विरुद्ध ?, उत्तर- दीक्षा के अवसर पर वासक्षेत्र डालना जिनाज्ञानुसार
ही है। भगवान महावीर स्वामी भी गौतम स्वामी
आदि गणधरों के मस्तक पर वासक्षेप डाला था। इस विषय में आवश्यक मूत्र को बृहत् टोका में निर्मुकि को गाथा के व्याख्यान में इस प्रकार कहा है:
"भगवन्मुखात् त्रिपदी श्रवणात् गणभृता मुत्पादव्यय धौव्य युक्त सदिति प्रताति रूप जायते अन्यथा सत्ता योगात् ।"
-भगवान् के मुख से त्रिपदो श्रवण करने से गणवरों को "उत्पाद्, व्यय, ध्रौव्य युक्त हो सत् है" ऐसी प्रतीति होती है अन्यथा सत्ता का प्रयोग हाता है।
इसके बाद पूर्वभव को भावित मति वाले वे गणधर द्वादशाङ्गी की रचना करते हैं । तब
"भगवं अणुगणं करेति । सक्कोय दिव्यं वइरमयं थालं दिव्वचुएणाणं भरेऊण सामिमुवगच्छति ताहे सामी सीहासणाप्रो उहत्ता पडिपुण्णं मुढ़ि केसराण गेण्हति ताहे गौतम सामिपमुहाइक्कारस वि गणधरा ईसिं अोणया परिवाडी ए ठायंति ताहे देवा आउज्जगीत सद्द निरुंभंति ताहे सामी पुव्वं तित्थं गोतम सामिस्सदव्वेहि गुणेहिं पज्ज
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