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-हे भगवन् ! परमाणु पुद्गल शाश्वत हैं या अशाश्वत ? इस प्रकार प्रश्न करने पर भगवान् ने कहा-गौतम ! परमाणु पुदल शाश्वा भी होते हैं अशाश्वत भी । गौतम ने पुनः प्रश्न किया भगवन् ! परमाणु पुदल किस कारण से शाश्वत होते हैं ? तब भगवान् ने कहा हे गोतन ! परमाणु पुदल द्रव्याथिक नय की अपेक्षा से शाश्वत एवं पर्यायाथिक नय की अपेक्षा से अशाश्वत कहलाते हैं । इसी प्रकार कुछ महानुभाव परमाणुओं के नित्यत्व से इनकेपर्याय भी नित्य मानते हैं, पर, यह उचित नहीं है। क्योंकि पञ्चम अङ्ग में स्पष्ट रूपेण इनको अनित्य कहा है। इसी प्रकार एक एक परमाणु में अनन्त पर्याय होते हैं, ऐसा पन्नवणा सूत्र के पाँचवे विशेष पद में भी कहा है, जिसकी विशेष जानकारी वहीं से प्राप्त करनी चाहिये। प्रश्न ३४:-समस्त इन्द्रियाँ अनन्त प्रदेश की बनी हुई अगुल के
असंख्य भाग जितनी मोटो एवं असंख्य प्रदेश की अवगाहना वाली कही हैं एवं श्रोत्र ( कान) चक्षु ( अाँख ) घ्राण ( नाक ) इन तीनों का विस्तार अंगुली के असंख्येय भाग जितना कहा है। साथ ही जिहन्द्रिय का अगुल पृथक्त्व तथा स्पर्शेन्द्रिय का शरीर प्रमाण विस्तार माना गया है। ऐसी स्थिति में कान, आँख एवं नाक का विस्तार एक समान है
अथवा एक एक से अल्प विशेष हे ? उत्तर:--"सबसे थोड़े प्रदेश में अवगाहन करने वाली चक्षु
इन्द्रिय है। उससे संख्येय गुरण प्रदेश में अवगाहन करने वाले श्रोत्र ( कान ) है : क्योंकि प्रभूत प्रदेशों में इनकी अवगाहना होती है। इससे संख्येयगुण प्रदेश घ्राणेन्द्रिय ( नाक ) के और इससे भी असंख्येय गुरण प्रदेश में
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