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( १०० ) सकते हैं। जैसा कि बृहत्कल्प सूत्र की टीका के
द्वितीय खण्ड में कहा है कि:"सक्खेते परक्खेते वा दो मासे परिहरितु गेण्हंति । जं कारणेण णिग्गयं तं पि बहिज्मोमियं जाणे ॥
--अपने ही क्षेत्र में यदि चातुर्मास किया हो एवं दूसरे क्षेत्र में दूसरे संविग्नों ने चातुर्मास किया हो तो स्वक्षेत्र एवं परक्षेत्र में दूसरे मास के पश्चात् तीसरे मास में वस्त्रादि ग्रहण करना चाहिये । कारणवश दो मास के मध्य में ग्रहण किये जा सकते हैं । प्रश्न ८१:-साधुओं ने जिस स्थान पर चातुर्मास किया हो उस
स्थान पर वे कितने मास के बाद पुनः रह सकते हैं ? उत्तर :- साधुओं ने जिस स्थान पर चातुर्मास किया हो, उस
स्थान पर वे दो तीन मास बाद पुन: रह सकते हैं, पहिले नहीं। यह बात प्राचारांग सूत्र वृत्ति के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के द्वितीय अध्ययन एवं उसके द्वितीय उद्देशक में कही गई है कि साधु भगवन्त ग्राम नगरादि में अन्य समय में एक मास रह कर विहार करे एवं बाद में एक मास दूसरे स्थान पर रहकर पुनः उसी स्थान पर आकर रह सकते हैं। परन्तु जहां चातुर्मास किया हो, उस क्षेत्र में तो दो तीन मास बाद ही रहा जा सकता है, उससे पहिले नहीं। दो तीन मास का अन्तर दिये विना यदि कोई चातुर्मास वाले स्थान पर आकर रहता है तो वह स्थान उपस्थान क्रिया के दोष से दूषित हो जाता है, इसलिये वहां रहना उचित नहीं ।
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