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प्रश्न १२१--इस समय कुछ साधु रजोहरण (ोधे) के ऊपर
ऊन की निशिथिया (ोधेरिया) सर्वदा बांध कर रखते हैं, यह क्या आगम के अनुसार है या रूढि
मात्र ही है। उत्तर- यह रूढ़िमात्र ही मालूम होता है । आगम में समया
नुसार बैठने के लिये उसका उपयोग करना, ऐसा आदेश है । यह बृहत्कल्पवृत्ति के द्वितीय खण्ड में कहा है कि"पाणिदय इत्यादि" गाथायाम् "निसिज्जित्ति" रजोहरण की दो निषद्या बैठने के लिए रखी जाती है । यहां यद्यपि दो निषद्या कही है, किन्तु इसी शास्त्र में अन्त में एक का ही उल्लेख किया गया है । उसका पाठ इसप्रकार है:___ "औपगहिन्यां निषद्याया मुपविष्टश्चार्थशृणोतीति"
औपग्रहिकी में निषद्या ऊपर बैठे हुए मुनि अर्थ सुनते हैं। इसी प्रकार योगशास्त्र वृत्ति में भी प्रथम प्रकाश के चरित्र अधिकार में कहा है कि "जिस स्थान पर बैठने की इच्छा हो उस स्थान को चक्षु से न देखकर हरण से प्रमार्जित करके निषद्य को बिछाकर बैठे।" ऐसा ही पाठ प्रवचन सारोद्धार की बृहद्वत्ति में एवं श्रीमलया गिरिजी कृत पिण्डनियुक्ति की टीका में भी है। प्रश्न १२२-साधु साध्वी एवं श्रावक श्राविका आदि कितनी
साक्षी से प्रत्याख्यान करें ? उत्तर:- आत्मसाक्षी, देव साक्षी, और गुरु साक्षी, इन तीन
साक्षी से करें। पहले आत्म साक्षी से प्रत्याख्यान
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