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( १९३. ): नियुक्ति का यह वचन सूत्र वचन नहीं है, ऐसा नहीं कहना चाहिये, क्योंकि श्रुत केवली श्री भद्राबाहु स्वामी के द्वारा नियुक्ति की रचना हुई है, अतः यहे. सूत्र जैसी ही है।
"सुयकवलिणा रइयमिति" वचनात् । .. और भी श्री भगवती सूत्र के अनुयोग द्वार में भी कहा है। यथाः--सुत्तत्थो खलु पढमो बीओ निज्जुत्ति मीसियो
भणियो । तइयों य निरक्सेसो एस विही होइ.
अणुओगे ॥" इत्यादि वचन से नियुक्ति भाष्य चणि श्रादि प्रमाणी कृत है। इसलिये जो इनके वचनों को नहीं मानते हैं वे सूत्र के उत्थापक हैं, ऐसा जानना चाहिये। प्रश्न १४४-अाधुनिक कुछ पाखण्डी गृहस्थों को भी अगोपांग
आदि सिद्धान्तों का पाठ पढ़ाते हैं । यह
जिनेश्वर की आज्ञा के अनुसार है या विरुद्ध है ? उत्तर - यह कृत्य जिनेश्वर की आज्ञा के विरुद्ध ही
ऐसा जानना चाहिये क्योंकि निशीथ सूत्र के उन्नीसवें उद्देशक में गृहस्थों को सूत्र वाचन के
लिये निषेध कहा है। इस सम्बन्ध का वह पाठ इस प्रकार हैं:यथाः-जे अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा वाएत्ति वायं
तं वा साइज्जति से आवज्जति चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्धाइयं ॥"
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