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शंका--यदि ऐसा है तो कतिपय ( दिगम्बर ) अत्यन्त प्रगट गुह्य प्रदेश वालो जिन प्रतिभाएं कराते हैं वे वन्दनीय है कि नहीं ?
समाधान--प्रथम तो वे भगवन्त की प्रतिमाएं ही नहीं हैं। क्योंकि भगवन्त की प्रतिमाए भगवन्त के समान अत्यन्त गुह्य प्रदेश वाली होनी चाहिये एवं उनके द्वारा बनवाई गई ये प्रतिमाएं तो साक्षात् गुह्य प्रदेश देखे जा सके, ऐसी है ऐसी स्थिति में कैसे वे वन्दनीय हो सकती है ? . वैसे उत्सूत्र वादियों एवं गृहस्थों द्वारा प्रतिष्ठापित चैत्य अवन्दनीय होते हैं, जैसा कि जिनपति सूरिजी ने प्रबोधोदय में कहा है। यथा :--
"पौर्णिमासिकादिमत वर्तीनि चैत्यानि अवन्यान्येव अनधिकारिप्रतिष्ठापित्वात् दिगम्बरादि परिगृहीतवद् इत्यादि ।"
-पौणिमा सिकादि मत में स्थित चैत्य अनधिकारियों द्वारा प्रतिष्ठापित होने से अवन्दनीय हैं जैसे दिगम्बरादि द्वारा परिगृहीत चैत्य अवन्दनीय होते हैं।
इस प्रकार स्वदर्शन मिथ्यादष्टि चैत्यवासी आदि से ग्रहण कराई गई प्रतिमाएं भी वर्जनीय ही हैं। .. "कूराभिग्गहिय महामिच्छादिट्ठीहि पावेहिं अहमाहमे हिं नामायरिय उवज्झाय साहुलिंगीहिं जिनघर मढ आवासो पकप्पियो साय सीलेहि।"
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