Book Title: Prashnottar Sarddha Shatak
Author(s): Kshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
Publisher: Punya Suvarna Gyanpith

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Page 251
________________ ( १९७ ) मान् गृहस्थी बनू, ऐसी प्रार्थना करना यह द्वितीय निदान है। (३) पुरुष के विविध कष्टों को देखकर मैं स्त्री बनू ऐसी प्रार्थना तृतीय निदान है। (४) स्त्री के परवशतादि कष्ट को देखकर मैं पुरुष बनू ऐसी प्रार्थना करना चतुर्थ निदान (५) मनुष्य सम्बन्धी विषयों की अशुचिता से देव सम्बन्धी अधिक विषयों की प्रार्थना करना यह पञ्चम निदान है। (६) जो देव, स्व एवं पर देव देवी के सेवन में तथा अपने द्वारा विकुक्ति देव देवी के सेवन में आसक्त है, वे बहुत (अधिक आसक्त) कहलाते हैं । एवं जो देव स्वयमेव देवत्व एवं देवीत्व के द्वारा विकुवित होकर सेवन करते है परन्तु दूसरों को नहीं वे स्वरत कहलाते हैं । इसके सम्बन्ध का निदान करना षष्ठ निदान है। ७) ऊपर कहे गये इन छ: निदानों के करने वाले भवान्तर में दुर्लभ बोधि होते हैं । इससे जो देव अमैथन हैं वे अरत कहलाते हैं। इस सम्बन्ध में निदान करना सप्तम निदान है। (८) ऊपर कहे गये १ बहुरत २ स्वरत ३ अरत में तीनों देव के भेद हैं । भवान्तर में मैं साध Aho ! Shrutgyanam

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