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( १९६ ) श्री मुनि रत्न सूरिकृत अम्बड चरित्र में तो ऐसा कहा है कि
रथपुर में रहने वाला अम्बड़ नाम का राजा जाति से क्षत्रिय था । उसको सांख्य मत की गोरख योगिनी ने सात देश दिये थे। उसके बत्तीस सुन्दर स्त्रियां थी एवं विशाल राज्य की समृद्धि वाला था। उसको प्रसन्न हुए सूर्यादि देवों ने अनेक विद्याएं दी थी। कुछ समय बाद श्री कोशी गुरु के उपदेश से सम्यक्त्व प्राप्त कर उसने उन्हीं के वचन से श्री महावीर प्रभू की चरण सेवा प्राप्त की थी, परन्तु मन की शिथिलता के कारण उसने १८ बार सम्यक्त्व छोड़ा और स्वीकार किया था। इसके पश्चात्, श्री वीर प्रभु के द्वारा बनाई गई सुलसा श्राविका की दृढ़ता को देखकर उसका सम्यक्त्व अत्यन्त दृढ़ हो गया एवं उसके फलस्वरुप अपने पुत्र को राज्य देकर अनशन से मृत्यु को प्राप्त हुए वह स्वर्ग में चला गया । दूसरे अम्बड़ चरित्र में यही अम्बड़ राजा आगामी चतुर्विशतिका में तीर्थङ्कर होगा, ऐसा कहा है।
स्थानाङ्ग वृत्ति में भी दो अम्बन श्रावकों की सम्भावना की है, परन्तु उसमें अम्बड़ परिव्राजक को ही सुलसा परीक्षक कहा है और वही भावी तीर्थङ्कर जीव है तत्व तो केवली या बहुश्रुत ही जानते हैं । यहां तो जो है, वही प्रमाण वस्तु है । प्रश्न १४६-शास्त्रों में जो नौ प्रकार के पाप निदान,
(निर्माण) कहे हैं वे कौन कौन से हैं ? उत्तर - (१) भवान्तर में मै राजा बनू ऐसी प्रार्थना करना
यह प्रथम निदान है। (२) बहु व्यापार एवं राज्य होने पर भी मैं समृद्धि
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