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. कर सामायिक उस पर अनुरागी हो गया । यह बात जान कर उसकी पत्नी, जो साध्वी थी, वह अनशन करके स्वर्ग में गई । यह जानकर मायावी उस सामायिक को वैराग्य हो गया एवं अनशन करके वह देव लोक में गया । वहाँ से अवतरित होकर भाईपुर में बाईक राजा का श्रार्द्र कुमार पुत्र हुआ। उस आर्द्रक राजा की राजागृह के राजा श्रेणिक के साथ मित्रता थी, जिसके कारण पारस्परिक भेंट आदि वस्तुत्रों के आदान प्रदान के प्रसंग में एक समय मार्द्रक राजा ने भढ भेजी । उस समय भाद्र कुमार ने भी अभयकुमार के लिये उपहार भेजा । उससे अभयकुमार ने विचार किया कि यह भवी जीव है, इसलिये मेरी मित्रता चाहता है। अतएव उसको सम्यक्त्व की प्राप्ति हो इस दृष्टि से उसने एकान्त में जिन प्रतिमा भेजी। उसको देखकर प्रार्द्रकुमार प्रतिबोध को प्राप्त हुआ एवं विषयों से विरक्त हो गया । उसको बिरक्ति को देखकर कहीं यह भग न जाय इस दृष्टि से उसके पिता ने उसके ऊपर ५०० राजकुमारों का नियन्त्रण करवा दिया । इतना नियन्त्रण होते हुए भी प्रश्वक्रीडा के बहाने वहां से भाग कर एवं आर्य देश में प्राकर प्रार्द्रकुमार ने दीक्षा ले ली । उस समय प्रकाश वाणी हुई कि "तेरे अभी बहुत भोगावली कर्म शेष हैं
"
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इस प्रकार देवतात्रों द्वारा रोकने पर भी "मेरे प्रतिरिक्त दूसरा कौन राज्य नहीं करता है ।" ऐसा कहकर देवता के वचनों की गणना करते हुए उसने चारित्र ग्रहण कर लिया।
इस प्रकार इस पाठ से यह ज्ञान होता है कि प्राकुमार जिनः प्रतिमा के दर्शन से ही प्रतिबोध को प्राप्त हुए थे 1
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