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( १६० ) ..--हे भगवन्त ! सूक्ष्म निगोद में सूक्ष्म निगोद होकर जीव कि कितने काल तक रहता है ?
हे गौतम ! जघन्य से अन्तमुहर्त एवं उत्कृष्ट से असंख्येय काल-असंख्याति उत्सर्पिणी अवसर्पिणी तक रहता है ।
संग्रहणी वृत्ति में भी “गोला य असंखेज्जा" इत्यादि गाथा के द्वारा यही अर्थ जानना चाहिये। प्रश्न-१४२ जिनकी रोमावली से रत्नकम्बल वस्त्र उत्पन्न
होता है वे मूषक अग्नि में उत्पन्न होते हैं। इसीलिये उसकी वस्त्र की मलिनता उसको अग्नि में डालने से स्वच्छ होती है ऐसी उक्ति सुनी जाती है । वया यह सत्य है ? मूषक की उत्पत्ति अग्नि में होती है, ऐसा किसी शास्त्र में कहा है या नहीं ! तथा किसी के पेट में गृह कोकिला उत्पन्न होती है
ऐसा भी सुना जाता है। इसका क्या कारण है ? उत्तर अनुयोग द्वार वृत्ति में आवश्यक निक्षप अधिकार
है, उसमें अग्नि में मूषक की उत्पत्ति कही है।
उसका यह पाठ है:“इष्ट का पाकायग्निमू पिकावास इत्युच्यये तत्र हि अग्नौ किल मूषिकाः सन्मूर्छन्तीनि" ___-ईटों के पकाने की अग्नि, मूषकों का प्रावास है ऐसा कहा जाता है। ___तथा पेट में गृहकोकिला की उत्पत्ति का कारण निशीथ चूर्णि में कहा है। उसका पाठ इस प्रकार है:- "गिहकोइल अवयबसंमिस्सेण भुत्ते ण पोइकिल गिह को इला संमुच्छंति त्ति ।"
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