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हे भगवन् ! उत्कृष्ट चारित्र की आराधना करके किबने भव में मोक्ष जाता है ?
हे गौतम ! उपर्युक्त कथनानुसार ही; परन्तु विशेष में यह है कि कोई एक जीव कल्पातीत ग्रेवेयकादि में उत्पन्न होते है । उत्कृष्ट चारित्र की आराधना वाला सौधर्मादि देवलोक में उत्पन्न नहीं होते। . .
हे भगवन् ! ज्ञान की आराधना मध्यम रीति से करके जीव कितने भव में सिद्ध होता है ?
हे गौतम ! कुछ जीव दूसरे भव में सिद्ध होते हैं। अधिकृत मनुष्य भव की अपेक्षा से द्वितीय मनुष्य भव बेकर तीसरा भव नहीं करते हैं ।
हे गोतम ! कुछ जीव दूसरे भव ते सिद्ध होते हैं अधिकृत मनुष्य भव लेकर तीसरा भव नहीं करते हैं । यहां चारित्र की आराधना ज्ञान की प्राराधना के साथ विवक्षा की हुई है उसके अतिरिक्त तो जघन्य ज्ञान की आराधना को आश्रित कर सात आठ भवसे अधिक भव नहीं होते हैं ऐसा कहेंगे तो यह कैसे सम्भव है ? क्योंकि चारित्र की अराधना का फल होता है, जिसके सम्बन्ध में कहा है कि जधन्य चारित्र की आराधना करने वाला अधिक में अधिक पाठ भव में तो सिद्ध होता ही है श्रुत सम्यक्त्व एवं देश विरति वाले के भव तो असंख्याल कहे हैं । इसीलिये चरित्र की आराधना से रहित ज्ञान एवं दर्शन की आराधना असंख्यात भव वाली होती है, सातआठ भव वाली नहीं।
हे भगवन् ! मध्यम रीति से दर्शन की आराधना करके जीव कितने भव में मोक्ष जाता है ?
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