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और अल्पप्रयत्नता नहीं होती क्योंकि उसका वैसा ही स्वभाव है ।
हे भगवन् ! जिसको उत्कृष्ट दर्शन की श्राराधना होती है तो क्या उसको उत्कृष्ट चारित्र की आराधना होती है ? तथा जिसको उत्कृष्ट चारित्र की प्राराधना हो तो क्या उसक उत्कृष्ट दर्शन की आराधना होती है ?
हे गौतम ! जिसको उत्कृष्ट दर्शन की आराधना हो, उसको चारित्र की आराधना उत्कृष्ट, मध्यम एवं जघन्य तीनों प्रकार की होती है । इसी प्रकार जिसको उत्कृष्ट चारित्र की आराधना हो उसके दर्शन की आराधना उत्कृष्ट नियमा होती है ।
हे भगवन् ! उत्कृष्ट ज्ञान की आराधना करके जीव कितने भवों में सिद्ध होता हैं ? जब तक कर्म का क्षय करें ।
भव
में सिद्ध हो जाते
दूसरे भव में सिद्ध
हे गौतम! कितने ही जीव उसी हैं जब तक कर्म का क्षय करें । कितने ही होते है, यावत् कर्म का क्षय करें । उत्कृष्ट चारित्र की आराधना हुई हो तो कितनेक जीव कल्पोपन्न सौधर्मादिक देवों के मध्य उत्पन्न होते हैं एवं मध्यम चरित्र की आराधना हुई हो तो कल्पा तीन ऐसे ग्रैवेयकादि देवलोक में उत्पन्न होते हैं ।
हे भगवन् ! उत्कृष्ट दर्शन की आराधना करके जीव कितने भव में मोक्ष जाता है ?
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हे गौतम ! ऊपर कहे हुए के अनुसार उसी भव में या दूसरे भव में मोक्ष जाता है ।
Aho ! Shrutgyanam