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हे गौतम ! पूर्व के अनुसार ही मध्यमरीति से चरित्र की आराधना करके जीव कितने भव में सिद्ध होता है ? क्या यावत् कर्म का अन्त करता है ?
हे गौतम ! कुछ जीव तीसरे भव में सिद्ध होते हैं । यावत कर्म का अन्त करते हैं । सात आठ से तो अधिक भव नहीं करते हैं । इस प्रकार जधन्य दर्शन की आराधना एवं चारित्र की आराधना के सम्बन्ध में जानना चाहिये ।
इस सम्बन्ध में यह प्रकरण भगवती सूत्र के अष्टम शतक के अन्तर्गत दशम उद्देशक में कहा है । विशेषार्थ उसकी टीका से जानना चाहिये |
इसके अतिरिक्त इन्द्रत्व, चक्रवत्तित्व एवं वासुदेवत्व आदि भावों को संसार में रहता हुआ जीव कितनी बार प्राप्त करता है ? इस प्रश्न का उत्तर किसी भी शास्त्र में देखने में नहीं प्राया । तीन प्रश्न भी इस प्रश्न का यही उत्तर दिया गया है इन्द्रत्व, चक्रवर्तित्व आदि भावों के जीवों ने अनन्त बार प्राप्त नहीं
किये ।
प्रश्न १३६ - द्रव्यमन एवं भाव मन का स्वरूप क्या है ? तथा द्रव्यमन के विना भावमन होता है कि नहीं ? एवं भाव मन के बिना द्रव्यमन होता है कि नहीं ?
उत्तर
संज्ञि पंचेन्द्रिय जीव मनः पर्याप्त नाम कर्म के उदय से मन के योग्य पुद्गल द्रव्यों को ग्रहण करके उनको मनन रूप में परिणित करता है, तो द्रव्यमन कहलाता है । एवं उन मन द्रव्यों का
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