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युक्त जीवों की उत्पत्ति परभव में कही है उसका पाठ इस प्रकार है:--
"नो इंदिशो उपउत्ता उववज्जति'नो इन्द्रियं मनः तत्र च यद्यपि मनःपर्यात्यभावे द्रव्यमनो नास्ति तथापि भारमनसश्व चैतन्य स्वरूपस्य सदा भावात, तेनोपयुक्तानामुत्पत्ते: नो इन्द्रियोपयुक्ता उत्पद्यन्ते इत्युच्यते ।" ___--जीव मन सहित परभव में उत्पन्न होता है। उसमें यद्यपि मनःपर्याप्ति के अभाव में द्रव्य मन नहीं है, तथापि चैतन्यस्वरूप भावमन सर्वदा होने से भावमन सहित उत्पत्ति होने के कारण मन सहित उत्पन्न होता हैं। प्रश्न १३७---"सव्वजीवाणं पियणं अक्ख रस्स अणंतो भागो
निच्चुग्घाडियो" शास्त्र के इस वचन से समस्त जीवों के अक्षर का अनन्त भाग सर्वदा अनाच्छादित रहता है। इस सैद्धान्तिक बचन से कहे गये "अक्ष" का क्या अर्थ है ? मुख्यतया अक्षर शब्द से यहाँ केवलज्ञान अर्थ लेना चाहिये और प्रसंगवश मतिज्ञान एवं श्रत ज्ञान का भी अर्थ बोध होता है। बृहत्कल्पवृत्ति में अक्षर श्रुताधिकार में तथा नन्दीसूत्र की वृति के
श्रु तज्ञान अधिकार में इसी प्रकार कहा है। तथा च तावद् वृहत्कल्प वृत्ति पाठः-उक्तं सर्वाऽऽकाशप्रदेशेभ्योऽनन्तगुणं ज्ञानम् ।
कृहत्कल्यबृति में कहा है कि समस्त आकाश प्रदेशों से भी ज्ञान अनन्त गुना है।
अब वह 'ज्ञान' अक्षर कैसे कहलाता है यह बताया जाता है।
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