________________
( १७२ ) देश विरतिभवास्तु असंख्येया उक्तास्ततः चरणाराधनारहित ज्ञान दर्शनाराधना असंख्य भविका अपि भवन्ति नतु अष्टभविका एवति । "मझिमियंणं भंते दंसणाराहणं आराहेत्ता एवं चेव, एवं मज्झिमियं चरित्ताराहणंपि जहणियं णं भंते णाणाराहणं पाराहेत्ता कतिहिं भवग्गह णेहिं सिझति, जाव अतं करेति, गोयमा, अत्थेगइए तच्चेणं भवग्गणेणं सिझति जाव अंतं करेति, सत्तट्ठभवग्ग हणाई पुण हाइक्कमति एवं दसणाराहणं पि एवं चरित्ताराहणंपि" इति भगवत्यष्टमशते दशमोद्देशके विशेषार्थस्तु एतवृत्त झें यः ।
"तथा इन्द्रत्व चक्रित्व वासुदेवत्वादिभावान् जीवः संसारे वसन् कति वारान् प्राप्नोतीति तु क्वापि शास्त्रे दृष्टं नास्तीति न लिख्यते, हीरप्रश्नेऽपि एतत्प्रश्नस्य इदमेव उत्तरं प्रोक्तमस्ति इति ॥"
भावार्थ:-हे भगवन् आराधना कितने प्रकार की होती है? गौतमस्वामी के द्वारा इस प्रश्न करने पर भगवान ने कहागौतम ! आराधना तीन प्रकार की होती है जो इस प्रकार है:ज्ञानाराधना, २ दर्शनाराधना एवं ३ चारित्राराधना। ज्ञानाराधना में उपधान आदि किये जाते हैं, दर्शनाराधना तब होती है, जब जिन वचनों में किसी भी प्रकार की भी शंका न की जाय एवं चार का पालन किया जाय तथा अतिचार रहित चरित्र के पालन करने का नाम चारित्राराधना है।
Aho! Shrutgyanam