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( १५७ ) शंका-इन पुद्गलों को छद्मस्थ जीव जानता है व देखता है कि नहीं?
समाधान-इन पुद गलों को केवली समस्त आत्म प्रदेशों से जानते हैं व देखते हैं। विशिष्ट अवधि ज्ञानरहित छद्मस्थ जीव न जानता है व न देखता ही है । इसी प्रकार कोई देव भी नहीं जानता है व न देखता है। ऐसी स्थिति में मनुष्य तो किस प्रकार जान सकता है व देख सकता है ? इत्यादि अधिकार पन्नवणा सूत्र से जानना चाहिये। प्रश्न १२५- दर्पण को देखने वाला मनुष्य क्या दर्पण को देखता
है या अपने शरीर को देखता है अथवा अपने प्रति
बिम्ब को देखता है ? उत्तर- प्रत्यक्षरूप में सामने होने से दर्पण को देखने वाला
मनुष्य दपण तो देखता ही है, परन्तु अपने शरीर को नहीं देखता ! क्योंकि उसका अपना शरीर अपनी प्रात्मा में स्थित रहता है, दर्पण में नहीं । वह अपने शरीर के प्रतिबिम्ब को देखता है, क्योंकि उसमें छाया का पुद्गलरूप है। श्री प्रज्ञापना सूत्र की वृत्ति में
कहा है कि-- "प्रायसो पहमाणो"---
दर्पण को देखने वाला मनुष्य क्या दर्पण को देखता है या शरीर के प्रतिबिम्ब को ? “भगवान् अाह-" भगवान् बोलेदर्पण को तो वह देखता ही है क्योंकि उसका प्रत्यक्षरूप व्यवस्थित रूप से उसके द्वारा जाना गया है, किन्तु अपने शरीर को नहीं देखता है क्योंकि उसका उस ( दर्पण में )अभाव है,
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