________________
(( १६३ )
को भी चक्षु दर्शन कहा है एवं उस समय इसका सद्भाव (सामान्य उपयोग ) अनाहारक में भी होने से उक्त दोष के लिये कोई प्रकार नहीं अर्थात् कोई दोष नहीं । श्री भगवती सूत्र के तेरहवें शतक के प्रथम उद्देशक में उसका विवेचन इसी प्रकार कियागया है ।
प्रश्न ६३१–समस्तं युगलिक मनुष्यों का कितना आयुष्य शेष रहे तब उनके सन्तानोत्पत्ति होती है ?
उत्तर
इनका छ: मास ग्रायुष्य शेष हो तब सन्तान की उत्पति होती है इसके पश्चात् प्रथम चारे में ४८ दिन, दूसरे में ६४ दिन एवं तीसरे में ७८ दिन तक वे सन्तानों का पालन करते हैं ।
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के प्रथमारक स्वरूपाधिकार में जीवाभिगम सूत्र के अन्तरद्वीपाधिकार में कहा है कि
"छम्मा
पर जुगलं पसति त्ति"
युग्मं सुतसुतारूपें पण्मासशेषजीविताः । प्रसूय यान्ति त्रिदिवमेते मृत्वा समाधिना ॥ १ ॥
इत्यादि लोक प्रकाशेऽपि एतेन एकोनाशीत्यादि दिनानि अपत्यपालनं विधाय तत्कालं युगलिनो म्रियन्ते इत्ति भ्रान्तिः परास्ता ।
युगालिक छः मास आयुष्य रहे तव पुत्र पुत्री रूप युगल को जन्म देते हैं। लोक प्रकाश में भी कहा है कि ये युगलिक
Aho ! Shrutgyanam