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प्रश्न १३५-जिस प्रकार जीवों को देवत्व एवं नृपत्व आदि
भाव अनन्त बार प्राप्त होते हैं, उसी प्रकार इन्द्रत्व, तीर्थकरत्व, भावितात्मा अनगारत्व चक्रवत्तित्व अर्धचक्रवत्तित्व आदि भाव भी अनन्त
बार प्राप्त हुए है या नहीं ? उत्तर - देवेन्द्रत्वादि भाव अनन्तबार प्राप्त नहीं हुए हैं।
शेष भाव तो सभी अनन्तबार प्राप्त हुए हैं। आचाराङ्ग सूत्र वृत्ति के प्रथम उद्देशक में जैसा कि इसी प्राशय को व्यक्त करते हुए कहा है:यथाः-देविंदचक्कट्टित्तणाइ मो-त्त ण तित्थयर भावं ।
अणगार भावियाप्पा विय सेसा य अणंतसो पत्ता ॥
-देवेन्द्रत्व एवं चक्रवर्तित्वादि तथा तीर्थङ्करत्व और भावितात्मा-अनगारत्व भाव को छोड़कर शेष समस्त भाव अनन्तबार प्राप्त होते हैं।
यहां यह शंका होती है कि यदि अाचाराङ्ग सूत्र वृत्ति के उक्त सिद्धान्त को मान लिया जाय तो "मरण विधि प्रकीर्ण" में दी गई निम्न गाथा का भाव असंगत हो जाता है । वह गाथा इस प्रकार है :देविंद चक्कट्टितणाइ रज्जाइ उत्तमा भोगा। पत्ता अनन्त खुत्तो न य हं तित्तिं गो तेहि ॥
-मैंने देवेन्द्रत्व एवं चक्रवत्तित्व राज्य आदि भोग अनन्तबार प्राप्त किये हैं, फिर भी मैं उनसे तृप्त नहीं प्रा।
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