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प्रतिक्रमण में "पडिक्कमामि गोयर चरियाए " इत्यादि सूत्र से तद् विषयक प्रतिचार का प्रतिक्रमण किस प्रकार उचित है ?
उत्तर- उत्सर्ग से दिन में शयन का निषेध होने पर भी अपवाद से मार्ग के श्रम के कारण निषेध न होने से कोई दोष नहीं है । यहां इस विषय में यह सूत्र ही अर्थ का ज्ञापक जानना चाहिये, जैसा कि साधु प्रतिक्रमण सूत्र की अवचूर्णि में कहा है कि"दिवा शयनस्य निषिद्धत्वात् असम्भव एव यस्यातिचारस्य, न अपवाद विपयत्वात् श्रस्य । तथाहि - अपवादतः सुप्यते एव साध्व खेदादौ इदमेव ज्ञापकमिति" एवमावश्यक वृहद्वृत्तावपि ज्ञेयम् ।
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- दिन में शयन निषेध होने से यह प्रतिचार सम्भव है इस शंका का समाधान यह है कि - यह सूत्र अपवाद विषयक है अतः दिन में शयन करने का निषेध नहीं हं । अपवादवश मार्ग में चलते हुए यदि कोई थक जाय तो शयन करना ही है । इस प्रकार यह सूत्र ही इस अर्थ का ज्ञापक है । श्रावश्यक वृत्ति में भी इस प्रकरण का उल्लेख है ।
इसी प्रकार रात्रि में गोचरी जाना सम्भव होने पर भी स्वप्नादि में यह सम्भव है । इसलिये रात्रि प्रतिक्रमण में भी गोचरी के प्रतिचार का प्रतिक्रमण उचित हो है । इसमें कोई दोष नहीं है । श्री प्रतिक्रमण सूत्र की अवचूर्णि में कहा है किरात्रिप्रतिक्रमणे "इच्छामि पडिक्कमिङ गोयर चरियाए " यह सूत्र निरर्थ ए क्योंकि “रात्रौ ग्रस्य असम्भवात् " - रात्रि
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