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मैं गोचरी का होना असम्भव है । इस शंका के समाधान में पुनः कहा है कि-स्वप्नादौ सम्भवादित्यदोषः"-स्वप्नादि में गोचरी का होना सम्भव है, इसलिए दोष नहीं है। प्रश्न १२४- केवल ज्ञानी साधु मोक्ष को जाते हुए चौदहवें
गुणस्थानक के चरम समय में जिन कर्म पुद्गलों को निर्जरा करते हैं वे परित्यक्त कर्म स्वभाव वाले
पुद्गल परमाणु कितने क्षेत्र को स्पर्श करते हैं ? उत्तर- वे पुद्गल सारे ही लोक को स्पर्श करते हैं । श्री प्रज्ञा
पना सूत्र के इन्द्रिय पद के अन्तर्गत प्रथम उद्देशक में
इस सम्बन्ध में इस प्रकार का पाठ है :
"अणगारस्स णं भंते भावियप्पणो मारणंतियसमुग्धाएणंमोहयस्स जे चरिमा निज्जरा पोग्गला सुहुमाणं ते पोग्गला पण्णत्ता समणाउसो सव्यं लोगं पि य णं ते प्रोग्गाहित्ता णं चिट्ठति हंता गोयमा ।" ___हे भगवन् ! मारणान्तिक समुद्घात से भावितात्मा अर्थात् ज्ञान दर्शनादि गुणों से स्पष्ट मुनि के शैलेशीकाल में अन्त्य समय में होने वाले निर्जरा के पुद्गल कर्मभाव से रहित परमाणुनों को आपने निश्चित रूपसे सूक्ष्म होने से चक्षु आदि इन्द्रियों के अविषय भूत कहे हैं।
इस प्रकार गौतमस्वामी द्वारा प्रश्न करने पर भगवान् कहते हैं कि-हंता गोयमा-'हे आयुष्मन् ! श्रमण ! इस प्रकार से निश्चित है कि वे पुद्गल सूक्ष्म हैं एवं सर्वलोक को स्पर्श करके रहते हैं।
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