________________
( १५२ ) "तएणं सा मिया देवी तं कदुसगडियं अणुकडढ माणी जेणे व भूमि धरए तेणेव उवागच्छई उवागच्छइत्ता चउप्पुडेणं वत्थेणं मुहं बंघमाणी, भगवं, गोयमा," एवं वयासी तुब्भेविणं भंते मुहपोत्तियाए मुहं बंधह तएणं से भगवं गोयमा मियादेवीए एवं वुत्ते समाणे मुहपोत्तियाए मुहं बंधइ त्ति,"
- इसके बाद मृगावती देवी काठ की सिगड़ी को खींच कर जहाँ भूमिधर ( भोयरा ) है, वहां आती है । आकर चार पड़ वाले वस्त्र में मुख बाँधकर भगवान गौतम स्वामी को कहती है कि-भगवन् ! आप भी मुहपत्ती से मुख बांधो ! उसके पश्चात् गौतम स्वामी मुहपत्ती से मुख बांधते हैं। __ इस पाठ से मुखवस्त्रिका से सदा के लिये मुखको बांधने वाले लिंगी सूत्र के उत्थापक होने से महा मिथ्या दृष्टि होते हैं, ऐसे महा मिथ्यादृष्टियों का मुख सम्यक् दृष्टि वालों के लिये अदृष्टव्य होता है, अर्थात् इनका मुख सम्यक दृष्टियों को नहीं देखना चाहिये।
आगम में कहा भी है कि"जे जिणवयणुत्तिएणं वयणं भासंति अहव मन्नति । सम्मदिट्ठीणं तहसणं पि संसार बुडिढकरं ॥"
-जो जिन वचनों से विरुद्ध वचन बोलते हैं या मानते हैं, उनका दर्शन भी सम्यक् दृष्टि वालों के लिये संसार-वर्धक होता है।
Aho! Shrutgyanam