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कल्पता है । उन्हें पानी भी गर्म दिया जाता है; और उनका शरीर देवाधिष्ठित भी हो जाता है । अतः देने का निषेध है ।
प्रश्न ११८ - साधु एवं श्रावकों को कितनी साक्षी से प्रत्याख्यान करने चाहिये ।
उत्तर- साधु एवं श्रावकों को ग्रात्म, देव एवं गुरु इन तीन साक्षियों से प्रत्याख्यान करने चाहिये । पहिले आत्मसाक्षी से, पश्चात् देवसाक्षी से एवं अनन्तर गुरुसाक्षी से करना ।
ततो गुरुणा मभ्यर्णे, प्रतिपत्ति पुरस्सरम् | विदधीत विशुद्धात्मा, प्रत्याख्यानप्रकाशनम् ॥
- उसके बाद निर्मल चित्त वाला वन्दना - पूर्वक गुरु के पास पच्चक्खाण करे । अर्थात् देववन्दन के लिये श्राये हुए, स्नानादि दर्शन एवं धर्मकथादि के लिये वहीं बैठे हुए धर्माचार्य गुरु के पास उचित प्रदेश में निर्मल चित्त एवं दम्भरहित होकर वन्दनपूर्वक प्रत्याख्यान करना चाहिये । देव के समीप किये हुए प्रत्याख्यान का प्रकाशन गुरु के सामने प्रगट करना चाहिये । इस प्रकार प्रस्चायान का विधान, ग्रात्मसाक्षिक, देवसाक्षिक एवं गुरुसाक्षिक रूप में तीन प्रकार का होता है ।
प्रश्न ११६–छद्मस्थ साधु तो प्रतिलेखना करते ही हैं, किन्तु केवल ज्ञानी भी प्रतिलेखना करते हैं या नहीं ।
उत्तर - यदि वस्यादिक जीव संसक्त हों तो केवली भी प्रति
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