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किन्तु गुरु से पच्चक्खान लिये हुए को भी देना चाहिये । दशमभक्तिक आदि को नहीं देना । यह आगार साधुओं के लिए ही है श्रावक तो इस सूत्र पाठ की अखण्डता के लिये उच्चारण करता है।
आवश्यक लघुवृत्ति में वृहद्वृत्ति का पाठ तो इस प्रकार है:यहाँ शिष्य प्रश्न करता है:
"केरिसवस्स साहुस्स पारिट्ठावणियं दायव्वं न दायव्वं वा । पायरियो भणइ आयंबिल मणायंबिले ।"
व्याख्या
पारिट्ठावणिय मुंजणे जोग्गा साधू दुविहा आयंबिलग्गा अण्णायं विलग्गा, अणायं विलग्गा विरहिया एक्कासणेक्कट्ठाण चउत्थछट्टहम निविगइय पज्जवसाणा दसमभत्तियादीणं मंडलीए उव्यरियं पारिट्ठावणियं न कप्पति दाउ, तेसिं पेज्ज उण्हयं वा दिज्जा अविय तेसिं देवया वि होज्जा ।"
अर्थः-परिष्ठापनिक पदार्थ भोजन करने योग्य साधु दो प्रकार के हैं -
१. आचम्ल वाले २. असाचाम्ल वाले एकाशन, एकलठाणा, चतुर्थ अमान् उपवास, छटठ-वेला-अट्ठम-तेला और निविककृतिक पत्त पर्यन्त वाले, दशमभक्त आदि ऊंची तपस्या वालों को पारिष्ठापनिक पदार्थ देना नहीं
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