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सूर्योदय के पूर्व ही प्रहारादि लाकर - सूर्योदय के पश्चात् भक्षण करना क्षेत्रातिक्रान्त कहलाता है ।
इसी प्रकार बत्तीस कवल खाने के प्रमाण से अधिक खान (प्रमाणातिक्रान्त होता है ।
श्री भगवती सूत्र में कहा है कि
"जोगं निरगंथो वा निग्गंधी वा फारसखिज्जं असणं पाणं खाइमं साइमं अगुग्गेर सूरिए पडिग्गहित्ता उग्गए सूरिए आहारं आहारेइ एस गं गोयमा खित्ता तिक्कते पाण भोयणे ।"
- जो साधु साध्वी श्रचित एवं निर्दोष प्रशन, पान, खादिम एवं स्वादिम इस चार प्रकार के आहार को सूर्योदय से पूर्व ग्रहण करके सूर्योदय के बाद भक्षण करे तो हे गोतम ! वह प्रहार एवं जल क्षेत्रा-तिक्रान्त कहलाता है ।
प्रश्न १११ प्रतिक्रमण सूत्र में कहे हुए प्रतिक्रम, व्यतिक्रम अतिचार एवं अनाचार का क्या स्वरूप है ?
उत्तर-
श्रावश्यक सूत्र की बृहद्वृत्ति में दिया गया उत्तर इस प्रश्न का उत्तर जानना चाहिये | आवश्यक वृत्ति का वह पाठ इस प्रकार है:
ग्राहाकम्मणिमंतणे पडिमा इक्कमो होड़ । पदभेदादि वक्कम गहिते तईओ तरो गिलिते ||
— कोई गृहस्थ प्रधाकर्मी प्रहार के लिये निमन्त्रण करे, और इसको मैं ग्रहण करूंगा" इस अभिप्राय से साधु यदि श्रवण भी करे तो साधु क्रिया का उल्लंघन रूप प्रतिक्रम दोष
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