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यह प्रथम गम है। २. चतुर्थावश्यक में करेमिभंते इत्यादि उक्तिपूर्वक जो इच्छामि पडिक्कउ इत्यादि बोला जाता है, यह द्वितीय गम है। ३. तथा पंचम आवश्यक में जो करेमिभंते इत्यादि उक्तिपूर्वक "इच्छामि ठामि काउसगं" इत्यादि बोला जाता है यह तृतीय गम है। इसी प्रकार दैवसिक की प्रथम गणना तो दिन की प्रधानता से की गई है । आवश्यक नियुक्ति की बृहट्टीका में इस सम्बन्ध में कहा
है कि--
"देवसिय राइय पक्खिय चाउम्मासे तहेव वरिसे य इक्केक्के तिन्नि गमा नायण्वा पंचसुएतेसु ।" ___--दिवस में जो हो उसको दैवसिक कहते हैं, ऐसे दैवसिक में तथा इसी प्रकार रात्रिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक एवं वार्षिक इन पांचों प्रतिक्रमणों में अर्थात् दैवसिक अादि एक.एक प्रतिक्रमण में तीन गमा होते हैं । इन पाँचों प्रतिक्रमणों में तीन गमा इसलिये होते हैं कि १ सामायिक करके कायोत्सर्ग करना, २ सामायिक करके प्रतिक्रमण करना, ३ एवं सामायिक करकेही पुनः कायोत्सर्ग करना होता है। प्रश्न ११६--कोयोत्सर्ग में उच्छ्वास आदि किस विधि से
लेना चाहिये ?
उत्तर-- कायोत्सर्ग में उच्छ्वास आदि सम्यक् यतना से लेना
चाहिये । यतना का स्वरूप आवश्यक बृहद् वृत्ति से जानना चाहिये, तत्सम्बन्धी संक्षिप्त पाठ इस प्रकार है :--
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