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अन्तिम दिन में एकाशन करने का नियम हो तो चातुर्मास में छठूतप वाले साधु को दो बार गोचरी जाना कल्पता है, इत्यादि कल्पसूत्र के पाठ के साथ विरोध प्राता है क्योंकि वहां छठ के पारणे में दो बार गृहस्थ के घर पाहार के निमित्त जाने का कहा है। प्रश्न ११४--श्रावक रात्रि भोजन का त्याग तो भोगोपभोग
परिमाण नामक सप्तम व्रत ही अभक्ष्य के त्याग के साथ कर देता है, फिर श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं में जो पांचवी प्रतिमा है, उसमें रात्रि
भोजन का त्याग कैसे लिखा है ? उत्तर-- प्रायः पूर्व में प्रशन खादिम का त्याग किया था एवं
पान (पेय पदार्थ) तथा स्वादिम को परतन्त्रता वश खुला रखा था । पांचवी प्रतिमा में तो इन दोनों के त्याग का भी उल्लेख है। इसलिये ऐसा लिखने में कोई दोष नहीं है।
प्रश्न ११५--दैवसिक आदि पंच प्रतिकमण में गमा अर्थात् सदृश
पाठ कितने हैं तथा आवश्यक नियुक्ति आदि ग्रथों में समस्त प्रतिक्रमणों की आदि में दैवसिक
प्रतिक्रमण की गणना किसलिये की है ? उत्तर--दैवसिक आदि पंच प्रतिक्रमण में तीन गमा हैं। वे इस
प्रकार हैं :--देव वन्दन करके चार क्षमाश्रमणपूर्वक प्राचार्यादि गुरुजनों को वन्दन कर "सण्वस्सवि" बोलने के बाद जो करेमि भंते इत्यादि उक्ति-पूर्वक इच्छामि ठामिउ काउसग्गं इत्यादि बोला जाता है
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