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प्रश्न ८३:-किसी क्षेत्र में कोई साधु। रहते हों एवं वहाँ यदि
कोई अतिथि (महमान) के रूप में साधु पाजायँ तो वहां रहे हुए साधुओं को उनके साथ कैसा व्यवहार
करना चाहिये। उत्तर:- यदि भोजन करते समय नवीन अतिथि साधु आ
जावे तो उनके मुख से निस्सही शब्द सुनने के पश्चात् मुख में रखे हुए ग्रास को खाकर पात्र में रखे हुए अन्न को छोड़ देना चाहिये। बाद में आगन्तुक साधु को यथोचित विधि से संक्षेप में पालोचना देकर मंडली में सामूहिक रूप से भोजन करे। यदि पूर्वानीत आहार में दोनों ही तृप्त हो जावें तो ठीक अन्यथा आगन्तुक साधुओं को आहार कराके अपने
लिए पुनः दूसरा आहार ले आना चाहिये। शंका-- इस प्रकार आगन्तुक साधुओं को कितने दिन तक आहार लाकर देना चाहिये ? समाधान--
तिन्नि दिणे पाहुण्णं सव्वेसिं असहबाल बुड्ढाणं । जे तरुणा सग्गामे वथव्वा बाहिं हिंडंति ॥
-यदि आगन्तुक साधु असमर्थ बाल एवं वृद्ध हों तो तीन दिन तक उसको आहारादि लाकर देना चाहिये। इसके पश्चात् अागन्तुक साधु अपने ग्राम में गोचरी के लिये जावे और पूर्व में रहे हुए साधु गाँव से बाहर गोचरी लेने जावें। यदि वे आगन्तुक साधु अकेले गोचरी जाने में समर्थ न हो तो दोनों समूहों में से एक एक साधु मिलकर जावे। कहा भी है कि
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