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प्रश्न ६३:-साधुनों को वस्त्र कब धोने चाहिये एवं न धोवे तो
क्या दोष है ? उत्तर- साधुओं को वर्षाकाल के पूर्व ही वस्त्र धो लेने
चाहिये। यदि न धोवे तो इस प्रकार दोष लगता हैयथा-अइभार वुडणपणए सीयल पावरणऽजीर गेलन्ने ।
ओभावण कायवहो वासासु अधावणे दोसा ॥
-वर्षाकाल के पूर्व वस्त्र न धोवे तो वस्त्र मैल से भारी हो जाता है, जीर्ण हो जाता है, उसमें फूलण आ जाती है, और इस प्रकार का वस्त्र धारण करने से अजीर्ण हो जाता है, बीमारी आती है, पराभव होता है एवं अप्पकाय के जीवों की विराधना होती है।
शंका--वर्षाकाल के पूर्व वस्त्र कब धोने चाहिये ? समाधान--
__ वर्षाकाल आने के पूर्व ही पन्द्रह दिन के अन्दर समस्त उपधि को यतनापूर्वक धो लेनी चाहिये । गरम जल थोड़ा हो तो जधन्य से भी पात्र परिकर (झोली पल्ला आदि) धो लेना चाहिये, जिससे गृहस्थ भिक्षा देते हुए जुगुप्सा न करे। ऐसा अोध नियुक्ति सूत्र की टीका में उल्लेख किया गया है। वस्त्र धोने के लिये गृहस्थों के पात्रों में घरों के छप्परों का जल, बादल वर्षा करके बन्द हो जावें, तब लेना एवं उस जल में क्षार डालना, जिससे जल सचित्त न होने पावे । वस्त्र धोने के बाद एक कल्याण अर्थात् दो उपवास का प्रायश्चित देना चाहिये। यह सम्पूर्ण अधिकार प्राचारांग सूत्र में दिये गये "न
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