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अथवा वस्त्र रहित होकर अपने प्राचार का पालन करते हैं। एवं परस्पर किसी को निन्दा नहीं करते हैं तो वे सभी साधु जिनाज्ञा के पालन करने वाले हैं, ऐसा मानना चाहिये।
___इसी प्रकार जिनकल्पिक या प्रतिमाधारी कोई साधु अपने कल्प (आचार) के अनुसार छ मास तक भी भिक्षा प्राप्त न कर सके तो भी वह कुरगडुक को भी "तू प्रोदनमुण्ड है ?" ऐसा कहकर उसकी निन्दा न करे।
स्थविरकल्पिक मुनियों को तीन वस्त्र अवश्य ग्रहण करने चाहिये । चाहे वे एक वस्त्र से शीत परीषह सहन करने में समर्थ हो तो भी तीन ग्रहण करना यह भागवती आज्ञा है।
अन्य कुछ यह कहते हैं कि जिनकल्पिक उत्कृष्ट क्रिया करते हैं, इससे उनको उत्कृष्ट पुण्य संचय की प्राप्ति होती है, वह पुण्य संचय विशिष्ट स्वर्गादि सुखों का उपभोग किये बिना क्षय नहीं होता है वास्तविक तत्व तो भगवान् केवली ही जानें। प्रश्न १०७-अणिका पुत्र प्राचार्य ने अपनी शिष्या साध्वी को केवल ज्ञान की उत्पत्ति जानने के बाद, वन्दन किया कि नहीं ? उत्तर - साध्वी को केवल ज्ञान उत्पन्न हो गया है। ऐसा
जानने के बाद प्राचार्य अणिका पुत्र ने साध्वी को वन्दन किया हो ऐसा नहीं मालूम होता है। क्योंकि आवश्यक सूत्र को वहत् टीका में “खामियो केवलि
आसाइनो त्ति" ऐसा खमाने का ही पाठ है। पाठांश इस प्रकार है:
Aho! Shrutgyanam