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प्रेक्षासंयम, उपेक्षासंयम, परिष्ठापनासंयम एवं प्रमार्जना संयम के अर्थ क्रमश: इस प्रकार है :-- - प्रेक्षासंयम-प्रथम चक्षु से भूमि को देख कर पश्चात् का उसग्ग शयन आदि करना।
उपेक्षा संयम--उपेक्षा दो प्रकार की होती है, १. संयमव्यापार उपेक्षा, २. गृहस्थ व्यापार उपेक्षा।
संयम में प्रमाद करते हुए मुनिको देखकर उसको संयमव्यापार में प्रेरणा देना यह संयम व्यापार उपेक्षा, एवं सावध कार्य करते हुए गृहस्थ को देखकर प्रेरित न करना गृहस्थ व्यापारोपेक्षा होती है।
परिष्ठापना संयम--आवश्यकता से अधिक वस्त्र भात जल आदि का विधि पूर्वक त्याग करने (परिष्ठापन करते ) समय संयम रखना । अर्थात् त्याज्य पदार्थों को विधि पूर्वक निर्जीव स्थान पर डालना।
प्रमार्जनासंयम-- “सागारिय पमज्जणसंजमो-' गृहस्थों के देखते हुए उनके सामने रजोहरण से प्रमार्जन नहीं करना । यही संयम है । "सेसेपमज्जणयत्ति"-गृहस्थों के अभाव में विधिपूर्वक विवेक से प्रमार्जन (पडिलेहण) करना ।
मनःसंयम-दुष्टपरिणामों, असद् विचारों एवं व्यर्थ कल्पनाओं को त्याग कर पवित्र, उन्नत एवं शुभ परिणाम रखना।
वचनसंयम--अपवित्र, असत्य, अहितकर एवं अप्रियवचन न कहना।
कायसंयम--दुष्ट चेष्टाओं, व्यर्थ चेष्टाओं एवं विवेकशून्य क्रियाओं का न करना।
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