________________
( १३३ )
" जाणामि कहं प्रतिसरण केण केवलेण स्वामियो केवलियासाइयोत्ति, "
छद्मस्थ गुरु के द्वारा केवलज्ञानवती साध्वी वन्दनीय नहीं है ।
प्रश्न १०८ -- जिस प्रकार कई साधु गांव से बाहर लम्बी भुजाएं कर कई भुजाएं एवं एक पाँव ऊँचा कर प्रतापना करते हैं, उसी प्रकार साध्वियां भी कर सकती हैं या नहीं ?
उत्तर -- साध्वियां इस प्रकार नहीं कर सकती हैं । बृहत्कल्प में "नोकप्पईत्यादि" इस पाठ के द्वारा निषेध करते हुए उनके लिए प्रतापना की लेने की विधि इस प्रकार कही है कि
"आर्याया ग्रामाद् बहिरूर्ध्व मुखबाहू कृत्वा एकं पादमूर्ध्वमकुञ्च्य तापना भूमौ यतापयितुन कल्यते किन्तु उपाश्रय मध्ये संघाटी प्रतिबद्धायाः प्रलम्बवाहायाः समतल पादिकायाः स्थित्वा यतापयितु कल्पते, यदवाङ् मुखं निपत्य आतापना क्रियते सा उत्कृष्टोत्कृष्टा इत्यादि; ।"
- साध्वियाँ गांव से बाहर दोनों भुजाएं ऊंची करके एक पांव ॐचा संकुचित कर प्रतापना भूमि पर प्रतापना नहीं ले सकती हैं, किन्तु अपने प्रोढ़ने के वस्त्र के अन्दर भुजाएं लम्बी करके दोनों पांवों को समान रखकर प्रतापना ले सकती हैं ! प्रश्न १०६ - पांच आश्रवों से रुकना इत्यादि संयम के १७ प्रसिद्ध हैं, परन्तु प्रकारान्तर से
प्रकार के भेद तो
Aho ! Shrutgyanam