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भी मनु संयम एवं असंयमके १७ भेद शास्त्रों में सुने
जाते हैं । उनको किस प्रकार जानना चाहिये ? उत्तर- पृथ्वी, जल, तेज, वायु, वनस्पति, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय,
चउरिइन्द्रिय,, पंचेन्द्रिय ; इन नौ प्रकार के जीवों में यतनापूर्वक प्रवृत्ति करना अर्थात् इनकी सुरक्षामें विवेक के साथ काम करना ये नौ प्रकार का संयम कहलाता है। तथा अजीवसंयम, प्रेक्षासंयम, उपेक्षा-संयम परिष्ठापना संयम. प्रमार्जना संयम, तथा मनवचन काया के योग को शुभ कर्म में प्रवत करना एवं अशुभ कर्मों से रोकना ये तीन प्रकार का मनोवाक्काय ( मनवचन काया का) संयम इस प्रकार कूल सतरह प्रकार का संयम एवं इससे विपरीत असंयम
होता है। अजीव संयमादि पांच संयमों का अर्थ प्रोद्यनियुक्ति आदि सूत्रों से जानना चाहिये । इस सम्बन्ध में इस प्रकार पाठ है :--
"पुढवि दग अगणि मारुन वणस्सई वेइं दिय तेइन्द्रिय चउरिदिय पंचेदिया ।"
"तथा अजीवत्ति” अजीवों में फूलण शीत आदि लगी हुई पुस्तकादि ग्रहण करने से असंयम होता है इससे इसका ग्रहण नहीं करना ! अादि शब्द से पांच प्रकार के वस्त्र पांच प्रकार के घास पांच प्रकार का चर्म इनको ग्रहण करने से असंयम एवं ग्रहण नहीं करने से संयम होता है।
इस प्रकार अजीव संयम का अर्थ जानना चाहिये । शेष
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