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सम्भावना हो तो रात्रि में मृतक को नहीं निकालना चाहिये । मृतक के शीर्षद्वार के सम्बन्ध में कहा है कि - " जत्ती दिसाई गामो तत्तो सीसं तु होइ कायं । उतरक्खणड्डा ग्रमंगलं लोग गरहा य ॥"
- जिस दिशा में गांव हो उस दिशा में मृतक का मस्तक उपाश्रय से ले जाते समय या परिष्ठापन करते समय करना चाहिये | जिससे यदि कदाचित् मृतक उठ जाय तो उपाश्रय की ओर ना सके । इसी प्रकार जिस दिशा में गांव हो उस ओर मृतक के पांव करने से अमंगल होता है एवं लोक निन्दा भी होती है कि ये साधु इतना भी नहीं जानते हैं कि गांव के सामने मृतक को नहीं किया जाता है ।
परिष्ठापन करते समय रजोहरण ( श्रोधा ) मुखवस्त्रिका ( मुहपत्ती ) चोलपट्टक (अधोवस्त्र ) आदि उपकरण मृतक के के पास रखना । यदि ये उपकरण न रखे जावें तो चतुर्गुरु प्रायश्चित एवं ग्राज्ञा भंग का दोष आता है । तथा मृतक मिथ्यात्व भाव को प्राप्त करता है अर्थात् मृतक देवलोक जाने पर अवधिज्ञान का उपयोग छोड़ने के पश्चात् उपकरणों को न देखे तो वह यह जानता है कि गृहस्थलिंग से ही मैं देव हुआ हूं | इस प्रकार वह मिथ्यात्व को प्राप्त करता है । अथवा राजा लोग परम्परा से इसको जानकर, कि कोई मनुष्य लोगों के द्वारा उपद्रवित हुआ है, इस बुद्धि से कुपित होकर समीप के दो तीन गांवों में प्रतिबन्ध लगादे | इस मृतक के पास उपकरणादि अवश्य रखने चाहिये ।
अब काउसग्ग द्वार के सम्बन्ध में कहा जाता है :as वरुवस् वा हायंतियो थुई तो बिते । सारवणं वसही करे सव्र्व्वं वसई पालो || १ ॥
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